दसद्वार
भारतीय अध्यात्म तथा दर्शन परम्परा में दसद्वार शरीर के दस छिद्रों को कहा जाता है। इन छेदों को द्वार कहा गया है। ये दस दरवाजे हैं - एक मुख का, दो नासिका के, दो आंखों के, दो कानों के, एक पायु का, एक उपस्थ का, तथा एक ब्रह्मरन्ध्र।इन्हें पिण्डस्थ (शरीर में स्थित) द्वार भी कहा जाता है। संत साहित्य में 'एक महल के दस दरवाजे' का बार-बार उल्लेख मिलता है। भक्तिकालीन साहित्य में जिस दसवें द्वार की चर्चा बार-बार मिलती है वह ब्रह्मरन्ध्र है जो मनुष्य के सिर के उपरी मध्य भाग में होता है।
जब संत नौ द्वारों की बात करते हैं तो उनमें ब्रह्मरन्ध्र (दसवें द्वार) की गिनती छोड़ दी जाती है।
योगी इस दसवें द्वार को देखने के लिए अपनी दृष्टि अन्तर्मुखी तथा ऊर्ध्वमुखी करते हैं।