दीनदयाल गिरि
दीनदयाल गिरी काशी के एक सन्यासी और संस्कृत भाषा के बड़े विद्वान थे। उन्होंने कई काव्य ग्रंथों की रचना की। उनका कविता काल 1822 से 1855 के बीच माना जाता है। उनकी तीन नीति पुस्तकें - अन्योक्ति कल्पद्रुम, अन्योक्तिमाला, और दृष्टांत तरंगिणी विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं।