दीपक
दीपक एक प्रकार का पात्र है जिसमें स्नेहक और बत्ती लगी होती है। बत्ती को जलाने से लौ निकलती है। इसका प्रयोग प्रकाश प्राप्त करने अथवा धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में स्नेहक के रुप में घी का प्रयोग किया जाता है। अन्य अवसरों में किसी भी तेल का उपयोग होता है।साहित्य में दीपक एक अर्थालंकार है। यह दीपक-न्याय पर आधारित है तथा सादृश्यगर्भ के गम्यौपम्याश्रय वर्ग का है। एक स्थान पर रखा हुआ दीपक जिस प्रकार अनेक वस्तुओं को प्रकाशित करता है उसी प्रकार साहित्य में एक ही कारक अनेक वाक्यार्थों का प्रकाश करता है।
उदाहरण –
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मुक्ता, मानिक, चून। (कहीं-कहीं मोती मानुष चून भी मिलता है)।
इसमें पानी तीन अन्य वस्तुओं पर लागू होता है।
दीपक तीन प्रकार के हैं – आवृतिदीपक, कारकदीपक, तथा मालादीपक।
दीपक पदों की आवृत्ति होने पर आवृत्तिदीपक होता है। आवृत्ति शब्द और अर्थ दोनों की हो सकती है।
उदाहरण –
जागत है तुम जगत में, भाव सिंह की बान।
जागत गिरिवर कन्दरनि, अरिवर तजि अभिमान।
कारकदीपक में कारक या क्रियाएं अनेक होती हैं और बात एक ही कही जाती है।
उदाहरण –
कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं नैनन हीं सब बात।
मालादीपक में पूर्वकथित तथा उत्तरकथित वस्तुओं का एक ही धर्म से सम्बंध रहता है जैसे माला में अनेक वस्तुएं एक ही धागे में पिरोयी होती हैं।
उदाहरण –
नभ में सुन्दर बिजली सी, बिजली में चपल चमक सी।
आंखों में काली पुतली, पुतली में श्याम झलक सी।