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दूध

स्तनपायी जीवधारियों में माता के स्तन से निकलने वाले द्रव, जिसे पीकर उनके शिशुओं का संवर्धन होता है, को दूध कहा जाता है।

स्तनपायियों को लिए दूध का अत्यन्त महत्व है क्योंकि इसके बिना उनके शिशुओं का जीना ही संभव नहीं है।

एक स्तनपायी जीव का दूध दूसरा स्तनपायी जीव भी पीता है तथा उससे पोषण प्राप्त करता है। जैसे, मनुष्य अन्य पशुओं - गाय, भैंस, बकरी आदि - का दूध पीते हैं।

दूध शिशुओं का पूर्ण आहार होता है। बड़ों के लिए भी दूध पूर्ण आहार हो सकता है परन्तु उसके लिए दूध की मात्रा अधिक होनी चाहिए।

दूध सदा ही स्वस्थ माता (पशु या मानव) का होना चाहिए। यदि दूध बीमार माता का हो तो उसे पीने वाले को जीवाणुजन्य बीमारियों के होने की संभावना अधिक होती है। मानव उसी पशु का दूध पीये जो स्वस्थ हो तथा जिसकी संतान जीवित हो। ऐसी गाय का दूध स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान माना जाता है।

उत्तम दूध तो वह है जो स्वच्छ पात्र में दूहने के तुरन्त बाद छानकर धारोष्ण ही पीया जाये। परन्तु दस-पन्द्रह मिनट बाद ही यह दूध विकृत हो जाता है। इसलिए उसके बाद उसे गर्म कर पीना चाहिए। एक उफान ही पर्याप्त है। अधिक गर्म करने पर दूध की पोषकता समाप्त हो जाती है तथा वह सुपाच्य भी नहीं रह जाता। गर्म दूध को पीने लायक ठंडा कर के ही पीना चाहिए।

दूध से अनेक प्रकार के अन्य पदार्थ बनते हैं - जैसे पनीर, दही, छाछ, मक्खन, घी, खोवा आदि। इनका सेवन भी मनुष्य तरह-तरह से करता है।

Page last modified on Wednesday April 2, 2014 04:23:20 GMT-0000