दृश्य एवं श्रव्य काव्य
दृश्य एवं श्रव्य काव्य रूपकों या नाटकों के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त होता है। काव्य (गद्य एवं पद्य दोनों) के दो ही भेद किये गये हैं – दृश्य काव्य एवं श्रव्य काव्य। दृश्य काव्य वह है जिसे देखा जा सकता है, तथा श्रव्य काव्य वह है जिसे सुना जा सकता है।जब ये अभिनीत किये जाने योग्य होते हैं तो इन्हें संस्कृत में रूपक तथा हिन्दी में नाटक कहा जाता है। अभिनय करने वाले पात्रों के रूप ग्रहण करने हैं इसलिए रूपक नाम प्रचिलित हुआ, और नाटक इसलिए क्योंकि अभिनय अन्य पात्रों का होता है, स्वयं का नहीं।