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देवघनाक्षरी

देवघनाक्षरी एक छन्द है जिसमें 33 वर्णों का घनाक्षरी वृत्त बनता है। इस छन्द का प्रयोग सबसे पहले देव ने किया था इसलिए इसका नाम देवघनाक्षरी पड़ा। देव ने 30 तथा 33 वर्णों का प्रयोग कर घनाक्षरी वृत्त बनाया। यह वृत्त पहले 31 या 32 वर्णों का होता था। देवघनाक्षरी को मुक्तक दण्डक का एक भेद माना जाता है। ध्वन्यात्मकता तथा नाद-व्यंजना की विशेषता के कारण यह छन्द कवियों में काफी लोकप्रिय रहा है।

तीस वर्ण वाले कवित्त में 16-14 पर यति होती है, 31 वर्ण वाले में 16-15 पर, 32 वर्ण वाले में 16-16 पर, तथा 33 वर्ण वाले में 16-17 पर यति होती है। भानु ने देवघनाक्षरी में 8, 8, 8 तथा 9 पर यति तथा अन्तिम तीनों वर्णों का लघु होना बताया है, परन्तु ऐसा मानने से इस छन्द की व्यापकता कम हो जाती है। इसलिए 16-17 पर यति ज्यादा उपयुक्त है।

देव का एक उदाहरण देखें –
झिल्ली झनकारैं पिक चातक पुकारैं बन, मोरनि गुहारैं उठैं जुगुनू चमकि चमकि।


Page last modified on Sunday April 2, 2017 12:40:05 GMT-0000