देश-विभाग
कवियों के लिए राजशेखर ने अपनी कविशिक्षा में देश-विभाग का वर्णन किया है ताकि वे अपने देश को जानें।उन्होंने जगत तथा जगत के विभिन्न विभागों को देश कहा है।
अनेक आचार्यों ने जगत की संख्या एक, दो, तीन, सात, या चौदह माने हैं।
इसमें पृथ्वी को भूलोक कहा गया है। भूलोक में विभिन्न आचार्यों ने एक, तीन, चार या सात समुद्र बताये हैं।
आद्यवर्ष पर्वत मेरू को माना गया है। इसके चारों ओर इलावृत्त नामक वर्ष बताया गया है। इसके उत्तर की ओर नील, श्वेत तथा श्रृंगवान नामक तीन वर्षपर्वत, तथा दक्षिण की ओर निषध, हेमकूट, तथा हिमवान नामक तीन वर्षपर्वत हैं। इनके घेरकर क्रमशः हरिवर्ष, किन्नरवर्ष, तथा भारतवर्ष अवस्थित है। भारतवर्ष के पांच भाग हैं – पूर्व-देश, दक्षिणापथ, पश्चातद्देश, उत्तरापथ, तथा मध्यदेश।
देश-विभाग के तहत राजशेखर ने नदी, पहाड़, वन, सरोवर, समुद्र आदि का वर्णन भी किया है।