देहस्थ पीठ
भारतीय चिन्तन एवं दर्शन परम्परा धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के केन्द्रों को पीठ कहने की परम्परा है, जैसे काशी पीठ, द्वारका पीठ आदि। ये भौतिक जगत के साधना केन्द्र हैं। परन्तु साधना के इस बाह्य पीठों के शरीर के अन्दर ही होने की भी मान्यता कुछ परम्पराओं में है, जिन्हें देहस्थ पीठ कहा जाता है। सन्त साहित्य में भी बाह्य तीर्थों की चर्चा देहस्थ तीर्थों के रूप में मिलती है।उदाहरण के लिए वज्रयानी सिद्धों के प्रमुख तन्त्रपीठ हैं जालन्धर, कामरूप, ओडियान, तथा श्रीहट्ट। बौद्ध हठयोग साधना में इन बाह्य तन्त्रपीठों को देहस्थ पीठ माना गया है जो शरीर के अन्दर स्थित हैं। चर्यापद में उड्डीयान तथा कामरूप का उल्लेख देहस्थ पीठ के रूप में महासुखचक्र में मिलता है। शैव साधना पद्धतियों में भी उड्डियानबन्ध, मूलबन्ध आदि नामों से प्रचलित प्रक्रियाएं काया में स्थित तन्त्रपीठों के नाम पर ही हैं। नाथपंथियों में भी उड्डियान, श्रीहट्ट (सुरहट), मुलतान (मूलस्थान), कामरूप (कांवरू) आदि देहस्थ पीठ बताये जाते हैं जिनकी चर्चा गोरखबानी में मिलती है।