दोष
किसी भी व्यक्ति में दोष उन्हें कहते हैं जिनके कारण अहित होता है।दोष पांच प्रकार के होते हैं।
पहला दोष है सहजदोष। ये स्वाभाविक काम-क्रोधादि से उत्पन्न होते हैं।
दूसरा दोष है किसी देश, काल आदि में नाना प्रकार के किये जाने वाले पाप कर्म।
तीसरा दोष है अभक्ष्य का भक्षण करना, असत्य का भाषण करना आदि।
चौथा दोष है संयोगज, जो किसी के साथ रहने के कारण आ जाता है।
पांचवां दोष है स्पर्शज, जो स्पर्श मात्र से ही आ जाता है अथवा संक्रमित हो जाता है।