Loading...
 
Skip to main content
(Cached)

द्वंद्वात्मक भौतिकवाद

द्वंद्वात्मक भौतिकवाद एक दर्शन है जो भौतिकवादी दर्शन की ही एक विशिष्ठ प्रणाली है जिसके माध्यम से सृष्टि और समाज का अध्ययन किया जाता है। इस शब्दावली का पारिभाषिक उपयोग सबसे पहले कार्ल मार्क्स (1818-83) ने किया था। यह प्रणाली हमारे दैनंदिन अनुभवों और उसके ज्ञान पर आधारित है।
इस दर्शन के अनुसार इस गत्यात्मक और सतत् परिवर्तनशील संसार की सृष्टि का तत्व पदार्थ है जिसके रूप में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। इस परिवर्तन की प्रणाली द्वंद्वात्मक है, तथा हर स्तर पर उसके मूल में संघर्ष है। संघर्ष का कारण है द्वंद्वन्याय, अर्थात् वस्तु में ही उसके विनाश के बीज का होना। यही संघर्ष कालान्तर में नयी व्यवस्था को जन्म देता है।


Page last modified on Monday April 3, 2017 06:33:11 GMT-0000