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द्विवेदी युग

हिन्दी साहित्य में 1903 से 1925 के बीच के काल को द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। इस युग का नाम महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर पड़ा।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जब 1903 में सरस्वती नामक पत्रिका के सम्पादक बने तो उन्होंने खड़ी बोली का परिष्कार आरम्भ किया। साहित्य के नये आदर्शों की उन्होंने स्थापना की जिनका अनुसरण मैथिलिशरण गुप्त समेत अनेक साहित्यकारों ने किया। हिन्दी को परिमार्जित करने में उनका अपूर्व योगदान रहा। उनके पूर्व भारतेन्दु युग से हिन्दी भाषा, साहित्य, और व्याकरण का जो परिमार्जन शुरु हुआ था वह और आगे बढ़ा।
साहित्य में विविध प्रकार की शैलियों का विकास उस युग की देन है।

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द्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, धमार ताल, धरती, धर्म

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