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धर्मगत लक्षणा

धर्मगत लक्षणा साहित्य में शब्दों का वैसा उपयोग है जिसमें प्रकट वस्तु का धर्मलक्षण ही अर्थ को प्रकट करता है। जहां लक्षणा का प्रयोजन रूप (व्यंग्यार्थ) लक्ष्यार्थ के धर्म में हो, वहां धर्मगत लक्षणा मानी जाती है।

उदाहरण के लिए - जब कहा जाता है कि अमुक शहर गंगा पर बसा है, तब उसका अर्थ होता है गंगा के तट पर बसा है। गंगा का अर्थ उसका अपना ही तट या किनारा होना धर्मगत लक्षणा है।


Page last modified on Thursday April 6, 2017 04:18:42 GMT-0000