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धृति

धृति एक संचारी भाव है। बड़े-बड़े विघ्न उपस्थित होने पर भी अपने कर्म में अविचलित रहने वाले मनोभाव या मानसिक अवस्था को धृति अथवा धैर्य कहा जाता है। वीरता, आध्यात्मिक ज्ञान, ऐश्वर्य, पवित्रता, सच्चरित्रता, बड़ों के प्रति आदर भाव, तथा क्रीड़ा का आनन्द आदि इसके विभाव हैं, जबकि तृप्ति, संतोष आदि इसके अनुभाव हैं।

विश्वनाथ के मत के अनुसार तत्त्वज्ञान तथा इष्टप्राप्ति आदि के कारण इच्छाओं का पूर्ण हो जाना धृति है, तथा इसमें सन्तृप्ति, वचनोल्लास आदि चिह्न दिखायी देते हैं।

रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार धृति तथा धैर्य दोनों भिन्न नहीं हैं।

Page last modified on Sunday April 9, 2017 05:34:53 GMT-0000