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नवलेखन

नवलेखन हिन्दी साहित्य की एक विधा है जो 1955 के आस-पास सम्पूर्ण हिंदी साहित्य में व्याप्त हो गया था। यह सर्वप्रथम नयी कविता से प्रारम्भ हुआ। वह एक साहित्यिक आन्दोलन था जिसे अज्ञेय कि रचनाओं में सर्वप्रथम प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। यह आन्दोलन कलात्मक और वैचारिक भी था, क्योंकि इसकी मूल प्रवृत्ति आधुनिक दृष्टि विकसित करने की रही है। स्वचेतना और बौद्धिक तटस्थता नवलेखन का आधार रही है। इसमें लोकतांत्रिक मूल्यों पर बल रहा है तथा मानवीय नियति के प्रति यह चिंतनशील रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह समकालीन स्थितियों की चर्चा करते हुए मानव के भविष्य की ओर इंगित करता है। ऐसे लेखन में जीवन को यथार्थ को समझने की गहरी कोशिश होती है जिसके कारण यह समकालीन घटनाओं का बहुत अधिक आश्रय न लेकर मानव जीवन पर उसके प्रभाव को अधिक महत्व दिया जाता है। इसमें सम्प्रेषण की आकुलता दिखायी देती है, और बौद्धिकता की अधिकता भी।

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