नागिन
नागिन सामान्य अर्थ में नाग का स्त्रीलिंग रूप है। परन्तु हठयोग में इसका अर्थ कुण्डलिनी है, जो अग्निचक्र नामक त्रिकोण चक्र, जो उस स्थान पर है जहां मेरुदंड पायु और उपस्थ के मध्य भाग में जुड़ता है, में स्थित स्वयंभू लिंग को साढ़े तीन वलयों में लपेटकर सर्पिणी की भांति अवस्थित है। इसे सर्पिणी नाम भी दिया गया है।नागिन शब्द का उपयोग सन्तों ने माया के लिए भी किया है। उनके अनुसार ब्रह्मांड में जो माया है वही पिंड या शरीर में नागिन या कुण्डलिनी है। यही कारण है कि कुण्डलिनी को आद्याशक्ति भी कहा गया है। नागिन के पर्यायवाची शब्द, जैसे भुजंगी, का भी इसी अर्थ में उपयोग मिलता है। इसी नागिन की फुंकार को प्रणव कहा गया है।
नागिन का पुल्लिंग रूप नाग है। इसीलिए जिस तरह ब्रह्मांड में माया, पिंड में नागिन हुई, उसी तरह ब्रह्मांड का निरंजन शरीर में नाग है। हठयोग में इसी नाग और नागिन ने यह सारा जगत प्रपंच फैला रखा है।