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नाथ सम्प्रदाय

नाथ सम्प्रदाय भारत का एक प्रमुख हिंदू धार्मिक सम्प्रदाय है। इसकी धारणा में व्यक्ति स्वयं ही नाथ है। यहां नाथ ईश्वर का पर्यायवाची है। वह किसी का दास नहीं है, जैसा कि दास सम्प्रदाय के लोग मानते हैं। दास सम्प्रदाय के अनुसार ईश्वर नाथ है और मनुष्य उसका दास। नाथ सम्प्रदाय का विस्तार पूरे भारत में पाया जाता है, यद्यपि इसके अनेक शाखा-प्रशाखाएं हैं। गोरखनाथ इस सम्प्रदाय के सर्वाधिक प्रख्यात संत थे। वह पहले से ही चली आ रही इस परम्परा के धर्माचार्य थे। वह इस सम्प्रदाय के संस्थापक न होते हुए भी इसके संघटनकर्ता और उन्नायक थे।

नाथपंथ कब से प्रारम्भ हुआ यह सही-सही ज्ञात नहीं है, परन्तु नाथ योगी जिस रसायन को खोजकर और पाकर अपनी काया को अजर-अमर बनाने की बात करते रहे हैं उसका उल्लेख पतंजलि ने भी किया है। अर्थात् नाथ पंथ की मूल धार पतंजलि के पूर्व से ही चली आ रही है।

नाथ योगियों तथा वज्रयानी सिद्धों की साधना पद्धतियों के पारस्परिक मिश्रण पाया जाता है, जिसके कारण अनुमान लगाया जाता है कि गोरखनाथ और उनके अनुयायी पहले वज्रयानी ही थे परन्तु बाद में शैव हो गये। नेपाल में, विशेषकर बौद्धों के बीच यही दन्तकथा प्रचलित है। जिस प्रकार वज्रयानी सिद्धों का नाथ योगियों पर प्रभाव पड़ा उसी प्रकार नाथ योगियों का भा वज्रयानी सिद्धों पर प्रभाव पड़ा। यही कारण है कि वज्रयानियों में एक शाखा विकसित हुई जिसका नाम वज्रनाथी सम्प्रदाय है।

नाथ नौ हैं। गोरख सिद्धान्त संग्रह में आठ दिशाओं में आठ नाथ हैं और केन्द्र में एक आदिनाथ हैं। इनके अतिरिक्त 24 कापालिक नाथों का भी उल्लेख किया गया है।

नाथ सम्प्रदाय का उद्भव योगपरक पाशुपात शैव मत से हुआ माना जाता है, जिसके कारण शिव को ही नाथ कहा जाता है। मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ का इसके विकास में बड़ा योगदान रहा। उन्होंने बारहपंथी मार्ग प्रारम्भ किया और वही कालान्तर में नाथ सम्प्रदाय के रूप में विकसित हुआ।

नाथ सम्प्रदाय के साधु अपने नाम के आगे नाथ जोड़ते हैं। कान छिदवाने वाले नाथ योगियों को कनफटा योगी कहा जाता है तथा दर्शन धारण करने वालों को दरशनी।

गोरखनाथ द्वारा विकसित किये गये नाथ सम्प्रदाय की 12 शाखाएं हैं। कहा जाता है कि शैव मत के 18 सम्प्रदाय और गोरख नाथ के 12 सम्प्रदाय आपस में काफी झगड़ते थे। गोरखनाथ ने उस झगड़े को खत्म करने के लिए दोनों साम्प्रदायिक शाखाओं को समाप्त कर 12 पंथ बनाये जिनके नाम हैं - सत्यनाथी, धर्मनाथी, रामपंथ, नटेश्वरी, कन्हण, कपिलानी, वैरागी, नाननाथी, आईपन्थ, पागलपंथ, धग्यपंथ, और गंगानाथी। इन्हें ही बारहपंथी योगी कहा जाता है।

इन बारपंथियों के अतिरिक्त एक और मार्ग है जिसे वामारग कहा जाता है। इसे आधा पंथ ही माना जाता है, परन्तु ये भी बारह हैं। भुज के कण्ठरनाती, पागलनाथी, रावल सम्प्रदाय, पंख या पंक, मारवाड़ के वन, गोपाल या राम के पंथ जो शिव के सम्प्रदाय माने जाते हैं, चांदनाथ कपिलानी, हेठनाथ, अईपंथ चोलीनाथ, मारवाड़ का वैराग पंथ, जयपुर के पावननाथ, और धजनाथ जो गोरखनाथ के सम्प्रदाय माने जाते हैं।

कहा जाता है कि अनेक नाथ योगी चिरंजीवी हो गये हैं तथा बहुत काल से मृत्यु पर विजय प्राप्त कर संसार में विचरण कर रहे हैं।

यह भी मान्यता है कि आदिनाथ स्वयं शिव थे, जिनके दो शिष्य हुए - मत्स्येन्द्रनाथ और जालन्धरनाथ। गोरखनाथ मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे। कहा जाता है कि मत्स्येन्द्रनाथ कदलीदेश में स्त्रियों के साथ विलास लीला में फंस गये थे जहां से गोरखनाथ ने उनका उद्धार किया।

हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ नौवीं शताबादी के मध्यकाल में थे। इस प्रकार तीन अन्य पंथ प्रवर्तक - गोरखनाथ, जालंधरनाथ, तथा कृष्णनाथ नौवीं शताब्दी के उत्तरार्थ काल में सक्रिय थे।

मत्स्येन्द्रनाथ के अकुलवीरतन्त्र में कहा गया हे कि जबतक अकुल वीररूपी ज्ञान नहीं होता, तभी तक बाल बुद्धि के लोग नाना प्रकार की जल्पना करते हैं। यह धर्म है, यह शास्त्र है, यह तप है, यह लोक है, यह मार्ग है, यह दान है, यह फल है, यह ज्ञान है, यह ज्ञेय है, यह शुद्ध है, यह अशुद्ध है, यह साध्य है, यह साधन है, यह तत्त्व है, यह ध्यान है - ये सब बालबुद्धि के विकल्प हैं। ... जिसे यह अद्वैतज्ञान प्राप्त हो गया रहता है, उसे प्राणायाम, समाधि, और ध्यान-धारणा की आवश्यकता नहीं रहती। ... वह ब्रह्मा, शिव, रुद्र, बुद्ध, देवी आदि उपायों से अभिन्न होकर स्वयं ध्यान और ध्याता बन जाता है। ... यज्ञ-उपवास, अर्चना-पूजा, होम, नित्य नैमित्तिक विधि, पितृकार्य, तीर्थयात्रा, धर्म-अधर्म, ध्यान, सबके अतीत हो जाता है। वह व्यक्ति सम्स्त द्वंद्वों से रहित हो जाता है।

Page last modified on Saturday May 24, 2025 15:18:00 GMT-0000