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नाद

योगी जब अपनी कुण्डलिनी जाग्रत करत लेते हैं तो वह ऊपर की ओर उठने लगती है। तब उसकी उर्ध्व गति से जो स्फोट होता है उस ध्वनि के नाद कहा जाता है। योगी इस नाद को सबसे पहले समुद्र गर्जन के समान, और उसके बाद क्रमशः मेघों के गर्जन, शंख, खंटे आदि की ध्वनि की तरह और अन्त में किकिणी, वंशी, भ्रमर आदि की ध्वनि जैसे बाताते हैं।

Page last modified on Saturday May 24, 2025 15:30:35 GMT-0000