नियम
योगशास्त्र में यम के बाद नियम का स्थान आता है।नियम पांच हैं – शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वरप्रणिधान।
शौच शुचिता को कहते हैं। इसके तहत व्यक्ति को शुचिता बरतनी होती है, जैसे स्नान करना, स्वच्छता का ध्यान रखना आदि।
सन्तोष का अर्थ है कि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ क्षमता भर कर्म करे तथा मिलने वाले फलों से अधिक की लालसा करते हुए बेचैन न रहे।
तप का अर्थ है कठिन परिश्रम से धर्म के कार्यों का अनुष्ठान। अर्थात् अच्छे धर्म सम्मत कार्यों को कष्ठ सहकर भी करना।
स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं अध्ययन करना।
ईश्वरप्रणिधान का अर्थ है आत्मा को ईश्वर में अर्पित करना।
योग दर्शन में कहा गया है कि व्यक्ति नियमों से पूर्व यमों के सेवन का अभ्यास करे तब दूसरे चरण में यम तथा नियम का साथ-साथ सेवन करे।