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निरंजन

निरंजन का सामान्य अर्थ है अंजन रहित। अर्थात वह जो बिना अंजन के है। अंजन का अर्थ है काजल, और भारत में परम्परा से लोगों द्वारा आंखों में काजल लगाने की परम्परा रही है। निर्गुण दर्शन परम्परा में चूंकि ईश्वर मनुष्य की तरह शरीरी नहीं हैं इसलिए वह निरंजन ही हैं। फिर अंजन के संलिप्तता का प्रतीक भी माना गया, और इस तरह निर्लिप्त को निरंजन कहा गया। इस प्रकार निरंजन ईश्वर के अनेक नामों में से एक हो गया। चूंकि निर्गुण ब्रह्म अलख है, अर्थात् जिन्हें देखा नहीं जा सकता, इसलिए उन्हें अलखनिरंजन भी कहा गया।

उड़ीसा के उत्तरी भाग, पश्चिम बंगाल, छोटानागपुर, और मध्य प्रदेश में रीवां तक के एक भौगोलिक क्षेत्र में तो आदिवासी समुदायों में एक सम्प्रदाय भी था जिसे आराध्य देव का नाम निरंजन या धर्म था। इस सम्प्रदाय की शाखाएं राजस्थान तक फैली थीं। शून्य पुराण नाम उनके ग्रंथ और धर्माष्टक आदि में निरंजन का चर्चा है, जिसके स्वरूप को शून्य, निराकार, और निषेधात्मक माना गया। सिद्धों ने भी निरंजन शब्द का उपयोग शून्य या निराकार रूप में ही किया है।

हठयोग में कहा गया है कि साधक को नाद सुनायी देने के बाद उसका चित्त और मारुत (प्राणवायु) इसी निरंजन में विलीन हो जाता है। गोरखपंथ में इसी निरंजन के साक्षात्कार को परमपद हासिल होना कहा गया। जो भी हो, नाथ-साहित्य में निरंजनियों की बानी मिलती है जिसे कुछ विद्वानों ने निर्गुण साहित्य में निरंजनी धारा कहा है।


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