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निरुक्त

निरुक्त का सामान्य अर्थ है - जिसे निश्चय पूर्वक कहा गया हो। यह छह वेदांगों में से एक का नाम है। निरुक्तकार अनेक हुए हैं, और इस प्रकार उनकी रचनाओं को निरुक्त कहा गया। परन्तु यास्क के निरुक्त को छोड़ अन्य रचनाएं आज उपलब्ध नहीं हैं, और यास्क के अनुसार भी वह निरुक्तकारों की परम्परा में चौदहवें थे। इसलिए जिन छह वेदांगों में से एक निरुक्त की बात कही जाती है वह यही यास्ककृत निरुक्त ही है।

वैदिक शब्दकोष, जिसे निघण्टु कहा जाता है, पर ही यास्क का निरुक्त है। निरुक्त में 12 अध्याय हैं। निरुक्त के प्रथम तीन अध्याय निघण्टु के प्रथम तीन अध्याय की व्याख्या करते हैं। निघण्टु का चौथा अध्याय निरुक्त के अगले तीन अध्यायों में व्याख्यायित किया गया है। निघण्टु का पांचवें और अन्तिम अध्याय पर निरुक्त के अगले छह अध्याय हैं। इनके अतिरिक्त इसमें दो परिशिष्ट हैं - पहले में अतिस्तुति तथा दूसरे में ऊर्ध्वमार्गगति का निरुपण किया गया है।

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