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पंचकोश

भारतीय चिंतन परम्परा में मानव शरीर को जिन पांच विभागों में बांटकर समझा गया है उसे पंचकोश कहते हैं। इनके नाम हैं - अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश, तथा आनन्दमय कोश।

त्वचा से लेकर अस्थि पर्यन्त अंगों के समुदाय को जो पृथ्वीमय है उसे अन्नमय कोश कहते हैं।

प्राणमय कोश भीतर से बाहर जाने वाले प्राण, बाहर से भीतर जाने वाले अपान, नाभिस्थ होकर शरीर में सर्वत्र रस पहुंचाने वाले समान, कंठस्थ उदान जो अन्न-जल आदि खींचने के लिए होता है, तथा व्यान जिसमें शरीर कर्म रूप से सभी चेष्टाएं करता है, को कहा जाता है।

मनोमय कोश में मन तथा अहंकार के अतिरिक्त वाक्, पाद, पाणि, पायु तथा उपस्थ आदि पांचों कर्मेन्द्रियां आती हैं।

विज्ञानमय कोश में बुद्धि, चित्त, श्रोत्र, त्वचा, नेत्र, जिह्वा तथा नासिका आदि पांचों ज्ञानेन्द्रियां आती हैं।

आनन्दमय कोश में प्रीति-प्रसन्नता, न्यून आनन्द, अधिक आनन्द, आनन्द तथा साधारण कारण रूप प्रकृति आते हैं।

व्यक्ति इन्हीं पंचकोशों से कर्म, उपासना, ज्ञान आदि की चेष्टाएं करता है।

Page last modified on Tuesday March 25, 2014 04:07:14 GMT-0000