पंच पवित्र
पंच पवित्र का सामान्य अर्थ है पांच पवित्र वस्तुएं। कौलज्ञान निर्णय के अनुसार ये हैं - विष्ठा, धारामृत, शुक्र, रक्त, और मज्जा। परन्तु अन्यत्र इन्हें पंच तत्व या पंच मकार - मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, और मैथुन - भी कहा गया है। कहीं इन्हें पंचामृत - नर, अश्व, उष्ट्र, हस्ति, एवं श्वान के मांस - भी कहा गया है। पंचामृत को पंचतत्व - क्षिति, जल, पावक, गगन, और समीर - भी माना गया है। इसे पंचस्कंध - रूप, रस, गंध, स्पर्श, एवं शब्द - भी कहा गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने पंचामृत - शुक्र, शोणित, मेद, मज्जा, और मूत्र को माना है। कुल मिलाकर शब्दों के अर्थों में संगति नहीं बैठती है, यद्यपि तांत्रिक बौद्धों, तान्त्रिक जैनों, सिद्धों, नाथों, और शैव-शाक्त तन्त्रों में इनके महात्म्य और प्रयोगविधि की विस्तार से चर्चा की गयी है।