पक्षधर साहित्य
पक्षधर साहित्य मार्क्सवदी विचारधारा की एक पारिभाषिक शब्दावली है, जो हर साहित्य को पक्षधर साहित्य मानती है, क्योंकि सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक प्रवृत्तियां हर साहित्य को एक निश्चित स्वरूप प्रदान करती है, और ये ही लेखक की प्रेरक शक्तियां भी होती हैं। परन्तु अन्य आलोचकों का कहना है कि पक्षधर साहित्य होता ही नहीं, क्योंकि पक्षधर होना तो साहित्य का ही पतन है, जिसके बाद वह रचना साहित्य ही नहीं रह जाती।