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बसदेवा

बसदेवा लोकगाथागीत परम्परा के मूलतः वैष्णव गायक हैं। ये उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, वाराणसी, कानपुर, मिर्जापुर के आसपास के इलाकों के मूल निवासी हैं। इनमें से अनेक रीवा होकर मध्यप्रदेश गये तथा बघेलखंड, बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ में भी बस गये। बसदेवा अपना सम्बंध वासुदेव से जोड़ते हैं तथा उनका भजन-कीर्तन भी करते हैं।

कुछ बसदेवा स्वयं को श्रावणी ब्राह्मण मानते हैं और श्रवण कुमान की गाथा भी गाते हैं। अनेक स्वयं को सनाढ्य या सनौरिया ब्राह्मण भी मानते हैं। अनेक उन्हें ब्राह्मण नहीं मानते परन्तु भजन-कीर्तन करने के कारण उन्हें ब्राह्मण स्वरुप अवश्य माना जाता है।

ये स्थायी आवास वाले भ्रमणशील चरित्रगायक हैं। राजा हरिश्चंद्र, राजा मोरध्यवज, कर्ण, श्रवण, कृष्णावतार आदि के ये पारंपरिक गायक हैं परन्तु नाथों और सिद्धों के प्रभाव में आकर ये राजा गोपीचंद और राजा भर्तृहरि की गाथाओं का गायन भी करते हैं। गाते समय ये गेरुआ वस्त्र पहनते हैं तथा योगियों की तरह ही उनका श्रृंगार भी होता है। अनेक बसदेवा प्रातःकाल पेड़ पर चढ़कर गीत गाते हैं। गाते समय समूह के अन्य हर गंग, हर गंगा, या जय गंग की टेक भी लगाते हैं। हरि या हर का भजन करने के कारण उन्हें हरबोला तथा गंगा की जयकार करने के कारण जय गंगान भी कहा जाता है।

बसदेवा जहां भी गये वहां उन्होंने गांव के बाहर तथा जंगल के निकट ही अपने निवास स्थान बनाये। परन्तु समय बीतने के साथ, ये नगरों में भी बसे।



Page last modified on Wednesday August 14, 2013 11:41:27 GMT-0000