ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्या करने की प्रकिया का ब्रह्मचर्य कहते हैं। यह मूलतः मन तथा इन्द्रियों का संयम है।आयुर्वेद में इसे आहार तथा निद्रा के बाद स्वास्थ्य का तीसरा स्तम्भ माना गया है। भारतीय जीवन पद्धति में तो जीवन के चार आश्रमों में से पहला आश्रम ब्रह्मचर्य आश्रम ही है जिसमें युवावस्था तक ज्ञानार्जन करना होता है। इस अवस्था में तपश्चर्या करनी होती है जिसमें इन्द्रिय निग्रह तथा स्वाध्याय प्रमुख हैं। भारतीय आध्यात्म में स्वास्थ्य तथा ज्ञान को भी ब्रह्म कहा जाता है, इसिलए इन्हें प्राप्त करने तथा जो प्राप्त है उन्हें संरक्षित रखने के लिए जो कर्म किये जाते हैं उन्हें ब्रह्मचर्या तथा पूरी प्रक्रिया को ब्रह्मचर्य कहा जाता है।
भारतीय आध्यात्मिक प्रसंग में रति से अलग रहने को ही सामान्यतः ब्रह्मचर्य कहा जाता है। अर्थात् काम-वासना से मुक्त रहना ही ब्रह्मचर्य है। परन्तु स्वास्थ्य प्रसंग में काम-वासना के पूर्ण दमन की बात नहीं कही जाती बल्कि काम-वासना के समुचित तथा सम्यक उपयोग को ब्रह्मचर्य कहा जाता है।
जन्म से लेकर 25 वर्ष की आयु तक के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन पर बल दिया जाता है क्योंकि इसी समय सभी प्रकार से मानव शरीर का विकास होता है।
ब्रह्मचर्य को सुख-शान्ति तथा स्वस्थ दीर्घजीवन का आधार माना जाता है।