भक्त
भक्त का सामान्य अर्थ है अभिन्न। यह विभक्त का विपरीतार्थक है। इस प्रकार जब अनेक भागों में विभक्त वस्तुओं या व्यक्तियों को एक करने या एक करने के भाव को भक्त कहते हैं। धर्म और आध्यात्म में ईश्वर के साथ एक हो जाने के भाव वाले व्यक्ति को भक्ति तथा उस क्रिया को भक्ति कहा जाता है।श्रीमद्भगवद्गीता में भक्त के चार भेद बतलाये गये हैं - अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु तथा ज्ञानी। ज्ञानी भक्त श्रेष्ठ माना जाता है। अर्थार्थी तो अर्थ की कामना से, आर्त अपने दुःख के निवारण के लिए, तथा जिज्ञासु ज्ञान प्राप्त करने के लिए भक्ति करता है। ज्ञानी व्यक्ति निष्काम भाव से भक्ति करता है, इसलिए श्रेष्ठ है।
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