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मद्य

मादक पेयों में मद्य सबसे अधिक हानिकारक पेय है यदि इसका उपयोग औषधि के रूप में न किया जाये। प्राचीन काल में मद्य का प्रयोग तो मूलतः औषधि के रूप में ही प्रारम्भ हुआ था परन्तु बाद में इसे लोग बिना चिकित्सकीय आवश्यक्ता के भी पीने लग गये।

मदय् व्यक्तियों के स्वास्थ्य को ही नहीं बल्कि उनके आचरणों को भी दुष्प्रभावित कर देता है।

सभी मादक पदार्थों की तरह ही इसकी मात्रा भी धीरे-धीरे बढ़ानी पड़ती है तथा व्यक्ति मद्यपान की आदत में फंस जाता है जहां से निकलना अत्यन्त कठिन हो जाता है। अधिक मात्रा में आधिक दिनों तक मदक पदार्थ लेते रहने से पाचन तंत्र विकृत हो जाता है। आमाशय में 10 प्रतिशत मद्य हो जाने पर तो पाचन कार्य स्थगित ही हो जाता है। ध्यान रहे कि अनेक प्रकार की औषधियों आदि को मद्य में ही डालकर सुरक्षित रखा जाता है। मद्य के इस गुण के कारण पेट में डाले गये अन्न आदि भी सुरक्षित जैसे के तैसे रहने लगते हैं। यकृत पर इसका सीधा दुष्परिणाम होता है। प्रारम्भ में मद्य उत्तेजना तथा चुस्ती लाता है जो मात्रा के अधिक होते जाने के साथ स्नायुमंडल को इतना निर्बल कर देता है कि विचारण की शक्ति भी नष्ट हो जाती है।

निरन्तर ही मद्य लेते रहने वालों का स्वास्थ्य बिगड़ना अवश्यंभावी है। आयुर्वेद में मद्य से मोह, भय, शोक, उन्माद, मद, मूर्च्छा, अपस्मार आदि होने की बात कही गयी है। कहा गया है कि मद्य का सेवन नहीं करने में ही बुद्धिमानी है।




Page last modified on Friday April 4, 2014 03:16:02 GMT-0000