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मोक्ष

भारतीय आध्यात्मिक चिंतन परम्परा में मोक्ष किसी जीवधारी की आत्मा की वह अवस्था है जिसमें वह किसी भी बंधन में नहीं होता।

यह आत्मा ही जीवधारी का मूल सूक्ष्मतम शरीर है जो स्थूल शरीर के साथ प्रकट होने पर शरीरधारी हो जाती है। स्थूल शरीर ग्रहण करने के साथ ही जीवधारी बंधन में बंध जाता है तथा नाना प्रकार के दुःख-सुख भोगता है। इस देह के अन्त होने के बाद भी इस मूल सूक्ष्मतम शरीर का अन्त नहीं होता तथा अभ्यान्तर प्राप्ति अर्थात् दूसरा शरीर ग्रहण करता है तथा पुनः सुख-दुःख पाता है। यह क्रम जन्म-जन्मांतर चलता रहता है। इसी चक्र से जीवधारी के मूल सूक्ष्मतम शरीर की मुक्ति की अवस्था को मोक्ष की अवस्था माना गया।

मोक्ष को विद्वानों ने भांति-भांति से समझने के प्रयत्न किये हैं। इस जीवात्मा से परमात्मा को जो भिन्न मानते हैं उनके लिए मोक्ष का अर्थ अलग है तथा जो दोनों को एक मानते हैं उनके लिए इसका अर्थ अलग। जो परमात्मा को मानते ही नहीं, जो आत्मा को भी नहीं मानते, जो दोनों को साथ-साथ एक विशेष संबंधों वाला मानते हैं, तथा जो आत्मा तथा परमात्मा दोनों को नहीं मानते आदि भिन्न विचारधाराओं वाले लोगों के लिए मोक्ष के अपने-अपने अर्थ हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि आत्मा को पहले से ही मोक्ष प्राप्त है तथा जीवधारी व्यर्थ में ही सुख-दुःख के भ्रम में फंसा रहता है। इसलिए अनेक विद्वान इस संसार के भ्रम से मुक्ति को ही मोक्ष मानते हैं।

वेदान्ती ब्रह्म में लीन हो जाने को मोक्ष मानते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मोक्ष मृत्यु के बाद प्राप्त होता है तथा कुछ कहते हैं कि इसी जीवन में मोक्ष प्राप्त हो सकता है।

अनेक लोग मानते हैं कि मोक्ष के बाद भी जीवात्मा परमात्मा के अधीन ही होता है परन्तु अनेक यह भी मानते हैं कि चूंकि जीवात्मा या जीवब्रह्म ही ब्रह्म या ईश्वर है इसलिए मोक्ष प्राप्त व्यक्ति के अधीनता का प्रश्न ही नहीं उठता, वह तो पूर्णतः स्वाधीन है।

मोक्ष के बाद


मोक्ष के बाद क्या होता है इसपर भी विद्वान अलग-अलग राय देते हैं। कई का कहना है कि मोक्ष प्राप्त व्यक्ति मृत्यु के बाद 36000 बार उत्पत्ति तथा प्रलय में जितना समय लगता है उतना समय मोक्ष के आनन्द में रहता है उसके बाद इस संसार में पुनः वापस आ जाता है। परन्तु कइयों का मानना है कि इस जन्म के कर्मों के फलस्वरूप एक नियत समय के लिए मोक्ष प्राप्त होता है तथा व्यक्ति उसे स्वर्ग में भोग लेने के बाद पुनः इस संसार में जन्म लेता है।

मोक्ष के बाद व्यक्ति कहां जाता है इसपर भी अनेक मत हैं। कुछ लोगों का कहना है कि व्यक्ति स्वर्ग में जाकर रहता है। शैवों के लिए वह स्थान शिवपुरी या कैलाश है, वैष्णवों के लिए वैकुण्ठ, श्रीकृष्ण भक्त गोसांइयों के लिए गोलोक, वाम मार्गियों के लिए श्रीपुर, ज्ञान मार्गियों के लिए ज्ञान गंज, जैनियों के लिए मोक्षशिला, ईसाइयों के लिए चौथा आसमान, मुसलमानों के लिए सातवां आसमान आदि।

पौराणिक इसे ईश्वर के लोक में सालोक्य निवास, सानुज्य अर्थात् ईश्वर के छोटे भाई की तरह रहना, सारूप्य अर्थात् ब्रह्मस्वरूप ही हो जाना, सामीप्य अर्थात् ईश्वर के निकट रहना, सायुज्य अर्थात् ईश्वर से ही संयुक्त हो जाना आदि मानते हैं।

मोक्ष में व्यक्ति की अवस्था

मोक्ष में व्यक्ति की क्या अवस्था होगी इसपर भी विद्वानों के अलग-अलग मत हैं।
कई मानते हैं कि व्यक्ति का केवल मूल सूक्ष्मतम स्वरूप आत्मा को ही मोक्ष मिलता है इसलिए वह इसी सूक्ष्मतम स्वरूप में मोक्ष की अवस्था में रहता है।
परन्तु अन्य सगुण उपासकों का मानना है कि वह केवल युवावस्था में ही स्वर्ग या ईश्वर के लोक में निर्धारित समय तक रहता है। इनमें से कई मानते हैं कि देहान्त के समय व्यक्ति की जो अवस्था होती है उसी अवस्था में वह ईश्वर के लोक में जाता है, चाहे वह बाल्यावस्था, युवावस्था या बृद्धावस्था कोई भी हो। इसमें व्यक्ति का लिंग भी वही रह जाता है जो देहान्त के समय होता है।

जीवनमुक्त अवस्था

सांसारिक जीवन में ही मोक्ष की अवस्था में रहने वालों को जीवनमुक्त कहा जाता है। जब सूक्ष्मतम आत्मा के रूप में इसी शरीर में रहते हुए व्यक्ति इस शरीर का दास नहीं होता तो उसे जीवनमुक्त कहा जाता है। अर्थात् वह सूक्ष्म शरीर स्वामी हो जाता है, तथा वह माया, मोह, पंचक्लेश, तथा अपने ही इन्द्रियों की दासता आदि से मुक्त हो जाता है। ऐसी अवस्था में वह शरीर का दास नहीं बल्कि शरीर उसका दास होता है। वह सर्वदा आनन्द में रहता है तथा प्रलयकाल में भी व्यथित नहीं होता। वह सदेह भी विदेह की तरह रहता है, तथा देह की जर्जर अवस्था के बाद इसे त्याग देता है जिसे लोग देहान्त के नाम से जानते हैं।

Page last modified on Wednesday March 26, 2014 07:10:26 GMT-0000