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मौर्य साम्राज्‍य

मौर्य साम्राज्‍य की अवधि (ईसा पूर्व 322 से ईसा पूर्व 185 तक) ने भारतीय इतिहास में एक युग का सूत्रपात किया। कहा जाता है कि यह वह अवधि थी जब कालक्रम स्‍पष्‍ट हुआ। यह वह समय था जब, राजनीति, कला, और वाणिज्‍य ने भारत को एक स्‍वर्णिम ऊंचाई पर पहुंचा दिया। यह खंडों में विभाजित राज्‍यों के एकीकरण का समय था। इससे भी आगे इस अवधि के दौरान बाहरी दुनिया के साथ प्रभावशाली ढंग से भारत के संपर्क स्‍थापित हुए।

सिकन्‍दर की मृत्‍यु के बाद उत्‍पन्‍न भ्रम की स्थिति ने राज्‍यों को यूनानियों की दासता से मुक्‍त कराने और इस प्रकार पंजाब व सिंध प्रांतों पर कब्‍जा करने का चन्‍द्रगुप्‍त को अवसर प्रदान किया। उसने बाद में कौटिल्‍य की सहायता से मगध में नन्‍द के राज्‍य को समाप्‍त कर दिया और ईसा पूर्व और 322 में प्रतापी मौर्य राज्‍य की स्‍थापना की। चन्‍द्रगुप्‍त जिसने 324 से 301 ईसा पूर्व तक शासन किया, ने मुक्तिदाता की उपाधि प्रा‍प्‍त की व भारत के पहले सम्रा‍ट की उपाधि प्राप्‍त की।

वृद्धावस्‍था आने पर चन्‍द्रगुप्‍त की रुचि धर्म की ओर हुई तथा ईसा पूर्व 301 में उसने अपनी गद्दी अपने पुत्र बिंदुसार के लिए छोड़ दी। अपने 28 वर्ष के शासनकाल में बिंदुसार ने दक्षिण के ऊचांई वाले क्षेत्रों पर विजय प्राप्‍त की तथा 273 ईसा पूर्व में अपनी राजगद्दी अपने पुत्र अशोक को सौंप दी। अशोक न केवल मौर्य साम्राज्‍य का अत्‍यधिक प्रसिद्ध सम्राट हुआ, परन्‍तु उसे भारत व विश्‍व के महानतम सम्राटों में से एक माना जाता है।

उसका साम्राज्‍य हिन्‍दु कुश से बंगाल तक के पूर्वी भूभाग में फैला हुआ था व अफगानिस्‍तान, बलूचिस्‍तान व पूरे भारत में फैला हुआ था, केवल सुदूर दक्षिण का कुछ क्षेत्र छूटा था। नेपाल की घाटी व कश्‍मीर भी उसके साम्राज्‍य में शामिल थे।

अशोक के साम्राज्‍य की सबसे महत्‍वपूर्ण घटना थी कलिंग विजय (आधुनिक ओडिशा), जो उसके जीवन में महत्‍वपूर्ण बदलाव लाने वाली साबित हुई। कलिंग युद्ध में भयानक नरसंहार व विनाश हुआ। युद्ध भूमि के कष्‍टों व अत्‍याचारों ने अशोक के हृदय को विदीर्ण कर दिया। उसने भविष्‍य में और कोई युद्ध न करने का प्रण कर लिया। उसने सांसरिक विजय के अत्‍याचारों तथा सदाचार व आध्‍यात्मिकता की सफलता को समझा। वह बुद्ध के उपदेशों के प्रति आकर्षित हुआ तथा उसने अपने जीवन को, मनुष्‍य के हृदय को कर्तव्‍य परायणता व धर्म परायणता से जीतने में लगा दिया।

मौर्य साम्राज्‍य का अंत


अशोक के उत्‍तराधिकारी कमज़ोर शासक हुए, जिससे प्रान्‍तों को अपनी स्‍वतंत्रता का दावा करने का साहस हुआ। इतने बड़े साम्राज्‍य का प्रशासन चलाने के कठिन कार्य का संपादन कमज़ोर शासकों द्वारा नहीं हो सका। उत्‍तराधिकारियों के बीच आपसी लड़ाइयों ने भी मौर्य साम्राज्‍य के अवनति में योगदान किया।

ईसवी सन् की प्रथम शताब्दि के प्रारम्‍भ में कुशाणों ने भारत के उत्‍तर पश्चिम मोर्चे में अपना साम्राज्‍य स्‍‍थापित किया। कुशाण सम्राटों में सबसे अधिक प्रसिद्ध सम्राट कनिष्‍क (125 ई. से 162 ई. तक), जो कि कुशाण साम्राज्‍य का तीसरा सम्राट था। कुशाण शासन ईस्‍वी की तीसरी शताब्दि के मध्‍य तक चला। इस साम्राज्‍य की सबसे महत्‍वपूर्ण उपलब्धियाँ कला के गांधार घराने का विकास व बुद्ध मत का आगे एशिया के सुदूर क्षेत्रों में विस्‍तार करना रही।

Page last modified on Wednesday April 2, 2014 05:55:45 GMT-0000