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यम

योगशास्त्र में यम पहला सिद्धान्त है।
यम पांच प्रकार के होते हैं – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह।
अहिंसा का अर्थ है किसी भी प्रकार से हिंसा न करना। व्यक्ति को चाहिए कि वह मन, वचन तथा कर्म से अहिंसा का पालन करे।
सत्य का अर्थ है कि व्यक्ति मिथ्याचार से अलग रहे तथा जो सही है उसे ही माने, उसी के अनुसार वचन तथा कर्म भी हो। सत्य के मार्ग का ही व्यक्ति सर्वथा अनुसरण करे।
अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है वासना से मुक्त रहना तथा उपस्थेन्द्रियों का संयम।
अपरिग्रह का अर्थ है सम्पत्ति के संचय की प्रवृत्ति का न होना, अर्थात् धन लोलुपता से रहित होना।
योगदर्शन में बताया गया है कि व्यक्ति इन पांच यमों का सदा सेवन करे तथा उसके बाद ही पांच नियमों का पालन करे। जो व्यक्ति यमों का सेवन किये बिना ही नियमों को करता है वह उन्नति को प्राप्त नहीं होकर अधोगति को प्राप्त होता है।
योगशास्त्र में पांचो नियम तथा पांचो यम का सेवन साथ-साथ करने का विधान है।


Page last modified on Sunday March 9, 2014 15:46:41 GMT-0000