राजयक्ष्मा
राजयक्ष्मा एक संक्रामक रोग है। यह वायु से फैनने वाले संक्रामक रोगों में एक है। इसे क्षय रोग या तपेदिक के नाम से भी जाना जाता है। असावधानी से रहने पर यह परिवार के अन्य लोगों को भी हो जाता है तथा वंशानुगत भी होता है।इस रोग के कीटाणु प्रायः सभी व्यक्तियों में पाये जाते हैं परन्तु ये सुषुप्तावस्था में ही रहते हैं। जब शरीर की जीवशक्ति क्षीण हो जाती है तो ये कीटाणु सक्रिय हो जाते हैं तथा व्यक्ति रोगी हो जाता है। स्वस्थ तथा सबल जीवशक्ति वाले लोगों में ये कीटाणु नष्ट हो जाते हैं या फिर असरहीन हो जाते हैं। समय पर सही ढंग से चिकित्सा न कराने पर यह रोग जानलेवा भी हो सकता है।
इस रोग के जीवाणु खुली तेज धूप में भी पांच-छह घंटे तक जीवित रह जाते हैं तथा संक्रमण की क्षमता रखते हैं। अन्य स्थानों में तो सप्ताह भर तथा अंधेरे स्थानों में तो महीने भर तक ये जीवित रह सकते हैं। इसलिए इसपर विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।
किसी भी प्रकार से निर्बल हुए फेफड़ों पर इस रोग के जीवाणुओं का आसानी से कब्जा हो जाता है।
इस रोग से ग्रस्त पशुओं के दूध पीने से भी इस रोग के संक्रमण की संभावना बनी रहती है। बकरी का दूध इसमें अपवाद माना जाता है।
राजयक्ष्मा का कारण
यह रोग संक्रमण से फैलता है। परन्तु शारीरिक शक्ति तथा रस-धातुओं के अत्यधिक अपव्यय, निरन्तर शक्ति तथा सामर्थ्य से अधिक परिश्रम करते रहना, भोजन में पौष्टिक आहार की कमी हो जाना आदि कारणों से जब शरीर कमजोर हो जाता है तो इस रोग के जीवाणुओं को पनपने तथा अपनी संख्या बढ़ाने का मौका मिल जाता है।पहचान
निरन्तर शरीर गर्म रहना (ज्वर रहना), लम्बे समय से खांसी रहना, धीरे-धीरे शरीर क्षीण होना, वजन घटना, चेहरा रूखा पड़ता जाना।ऐसे रोगी को यथाशीघ्र किसी कुशल चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए।