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यह आठवां कूट है तथा इसके लिए आठ अंक निर्धारित हैं।

एक ही नाड़ी होने पर शारीरिक व्यवधान, रोग, उत्तेजना, अशान्ति आदि का प्रभाव बढ़ जाता है। नाड़ियों के संयोग से दम्पति में चैतन्यता, शून्यता, प्रसन्नता, अप्रसन्नता, सुख-दुःख में वृद्धि या हानि का कारण उपस्थित हो जाता है इसलिए नाड़ी विचार महत्वपूर्ण होता है।

ब्राह्मण वर्ण के लिए यह विशेष रुप से महत्वपूर्ण है तथा नाड़ी दोष होने पर बिना परिहार के विवाह वर्जित है। अन्य वर्णों के लिए दोष होने पर भी इसकी उपेक्षा कर दी जाती है क्योंकि उनके लिए अन्य कूट अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।

नाड़ी दोष होने पर इसका परिहार मुश्किल से ही मिल पाता है। फिर भी यदि वर-कन्या दोनों का नक्षत्र भिन्न हों, परन्तु राशि एक हो या एक नक्षत्र राशि दो हो या एक नक्षत्र में चरण भेद हो तब नाड़ी दोष प्रभावी नहीं होता।
दोनों का एक ही नक्षत्र में जन्म होने से नाड़ी दोष नहीं होता।

एकाधिपत्य, सम सप्तक अर्थात् दोनों की राशि या राशीश एक हो, एक की राशि से दूसरे की राशि सातवीं हो, या तीन, ग्यारह, चतुर्थ या दशम् हो तो भी नाड़ी दोष नहीं होता।

एक तत्व होने पर भी नाड़ी दोष परिहार्य माना जाता है।

नाड़ियां तीन प्रकार की हैं - आदि, मध्य एवं अन्त।

समान नाड़ी होने पर शून्य अंक दिये जाते हैं तथा अलग-अलग नाड़ी होने पर आठ अंक।


Page last modified on Sunday April 7, 2013 07:10:08 GMT-0000