वर-वधू मेलापक गणना में नृदूर विचार का अपना ही महत्व है। अष्टकूट गणना के अतिरिक्त इसका भी अनेक भारतीय समाजों में विचार किया जाता है।
जब वर कन्या के नक्षत्र एक से दूसरे तथा दूसरे से सत्ताइसवें होते हैं तो नृदूर दोष माना जाता है।
वर से कन्या का नक्षत्र दूर होने को कम दोषपूर्ण माना जाता है परन्तु कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र के दूर होने को भारी दोष माना जाता है तथा विवाह वर्जित कर दिया जाता है।
समझा जाता है कि इस दोष के रहने पर पति-पत्नी में काफी दूरियां बनी रहती हैं तथा वे कभी भी एक दूसरे के निकट नहीं आ पाते।
परन्तु ग्रह मैत्री तथा राशि मैत्री आदि होने पर इस दोष का परिहार मान लिया जाता है।
जब वर कन्या के नक्षत्र एक से दूसरे तथा दूसरे से सत्ताइसवें होते हैं तो नृदूर दोष माना जाता है।
वर से कन्या का नक्षत्र दूर होने को कम दोषपूर्ण माना जाता है परन्तु कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र के दूर होने को भारी दोष माना जाता है तथा विवाह वर्जित कर दिया जाता है।
समझा जाता है कि इस दोष के रहने पर पति-पत्नी में काफी दूरियां बनी रहती हैं तथा वे कभी भी एक दूसरे के निकट नहीं आ पाते।
परन्तु ग्रह मैत्री तथा राशि मैत्री आदि होने पर इस दोष का परिहार मान लिया जाता है।