सभी सत्ताइस नक्षत्रों को जिन तीन भागों में बांटा गया है उन्हें यून्जा कहा जाता है।
यून्जा तीन प्रकार के हैं -
1. आदि
2. मध्य, एवं
3. अन्त
वर तथा कन्या दोनों के यून्जा अवक् होड़ा चक्र से जाना जाता है।
यदि दोनों आदि यून्जा के हों तो स्त्री पुरुष पर प्रीति रखती है परन्तु पुरुष स्त्री पर प्रीति नहीं रखता।
दोनों मध्य यून्जा के हों तो दोनों की परस्पर प्रीति रहती है।
दोनों अन्त यून्जा के हों तो स्त्री पुरुष के अत्यधिक प्रेम करती है परन्तु पुरुष स्त्री से प्रेम नहीं रखता।
पुरुष आदि तथा स्त्री मध्य – स्त्री की पुरुष से अधिक तथा पुरुष की स्त्री से सामान्य प्रीति
पुरुष आदि तथा स्त्री अन्त – पुरुष की स्त्री से अधिक तथा स्त्री की पुरुष से सामान्य प्रीति
पुरुष मध्य तथा स्त्री आदि - पुरुष की स्त्री से अधिक तथा स्त्री की पुरुष से सामान्य प्रीति
पुरुष मध्य तथा स्त्री अन्त - स्त्री की पुरुष से अधिक तथा पुरुष की स्त्री से सामान्य प्रीति
पुरुष अन्त तथा स्त्री आदि - स्त्री को पुरुष अत्यधिक प्रेम करता है परन्तु स्त्री पुरुष को प्रेम नहीं करती
पुरुष अन्त तथा स्त्री मध्य - पुरुष की स्त्री से अधिक तथा स्त्री की पुरुष से सामान्य प्रीति
यून्जा तीन प्रकार के हैं -
1. आदि
2. मध्य, एवं
3. अन्त
वर तथा कन्या दोनों के यून्जा अवक् होड़ा चक्र से जाना जाता है।
यदि दोनों आदि यून्जा के हों तो स्त्री पुरुष पर प्रीति रखती है परन्तु पुरुष स्त्री पर प्रीति नहीं रखता।
दोनों मध्य यून्जा के हों तो दोनों की परस्पर प्रीति रहती है।
दोनों अन्त यून्जा के हों तो स्त्री पुरुष के अत्यधिक प्रेम करती है परन्तु पुरुष स्त्री से प्रेम नहीं रखता।
पुरुष आदि तथा स्त्री मध्य – स्त्री की पुरुष से अधिक तथा पुरुष की स्त्री से सामान्य प्रीति
पुरुष आदि तथा स्त्री अन्त – पुरुष की स्त्री से अधिक तथा स्त्री की पुरुष से सामान्य प्रीति
पुरुष मध्य तथा स्त्री आदि - पुरुष की स्त्री से अधिक तथा स्त्री की पुरुष से सामान्य प्रीति
पुरुष मध्य तथा स्त्री अन्त - स्त्री की पुरुष से अधिक तथा पुरुष की स्त्री से सामान्य प्रीति
पुरुष अन्त तथा स्त्री आदि - स्त्री को पुरुष अत्यधिक प्रेम करता है परन्तु स्त्री पुरुष को प्रेम नहीं करती
पुरुष अन्त तथा स्त्री मध्य - पुरुष की स्त्री से अधिक तथा स्त्री की पुरुष से सामान्य प्रीति