योनि चौथा कूट या गुण है जिसके लिए चार अंक निर्धारित किये गये हैं। वर-वधू मेलापक विचार में इसका महत्व शारीरिक गठन, दाम्पत्य भोग-विलास की प्रवृत्ति, एवं संतान पर होने वाले इसके प्रभाव को जानने के लिए है।
सभी 27 नक्षत्रों को 14 योनियों में बांटा गया है जिनके क्रमवार नाम इस प्रकार हैं -
1. अश्व
2. गज
3. मेष
4. सर्प
5. मार्जार
6. श्वान
7. मूषक
8. गौ
9. महिष
10. व्याघ्र
11. मृग
12. वानर
13. नकुल, तथा
14. सिंह
अपने जन्म के समय के नक्षत्रों के आधार पर जातक को अपना योनि जानना चाहिए। यह अवकहोड़ा चक्र से सहज ही ज्ञात किया जा सकता है।
यदि वर-कन्या एक ही योनि के हों अर्थात् समान योनि के हों तो चार अंक दिये जाते हैं, शुभ मित्र योनि हो तो तीन, सम मित्र योनि हो तो दो, अशुभ सम शत्रु योनि हो तो एक। योनियों में महावैर होने पर अर्थात् महावैर योनि होने पर शून्य अंक दिये जाते हैं।
अश्व और मेष, अश्व और गौ, तथा अश्व और मृग को तीन अंक दिये जाते हैं क्योंकि इन्हें शुभ मित्र योनि माना जाता है।
अश्व और गज, अश्व और सर्प, अश्व और श्वान, अश्व और मार्जार, अश्व और मूषक, अश्व और वानर, एवं अश्व और नकुल को दो अंक दिये जाते हैं क्योंकि इन्हें सम मित्र योनि माना जाता है।
अश्व और व्याघ्र, तथा अश्व और सिंह को एक अंक दिया जाता है क्योंकि इन्हें अशुभ सम शत्रु योनि माना जाता है।
अश्व और महिष को शून्य अंक दिये जाते हैं क्योंकि ये महावैर योनि के माने जाते हैं।
इसी प्रकार अन्य सम्बंधों के लिए अंक निम्न प्रकार हैं - (क्षैतिज वर के लिए, उर्ध्वाधर कन्या के लिए)
विशेष – शूद्र वर्ण के जातक के लिए यह अति महत्वपूर्ण विचारणीय विषय है। ऐसे जातक के लिए योनि दोष होने पर विवाह सर्वथा वर्जित है।
अन्य वर्ण के जातकों के लिए भी इसका महत्व है। यदि महावैर योनि हो तो उसका परिहार ग्रह मैत्री से होता है।
सभी 27 नक्षत्रों को 14 योनियों में बांटा गया है जिनके क्रमवार नाम इस प्रकार हैं -
1. अश्व
2. गज
3. मेष
4. सर्प
5. मार्जार
6. श्वान
7. मूषक
8. गौ
9. महिष
10. व्याघ्र
11. मृग
12. वानर
13. नकुल, तथा
14. सिंह
अपने जन्म के समय के नक्षत्रों के आधार पर जातक को अपना योनि जानना चाहिए। यह अवकहोड़ा चक्र से सहज ही ज्ञात किया जा सकता है।
यदि वर-कन्या एक ही योनि के हों अर्थात् समान योनि के हों तो चार अंक दिये जाते हैं, शुभ मित्र योनि हो तो तीन, सम मित्र योनि हो तो दो, अशुभ सम शत्रु योनि हो तो एक। योनियों में महावैर होने पर अर्थात् महावैर योनि होने पर शून्य अंक दिये जाते हैं।
अश्व और मेष, अश्व और गौ, तथा अश्व और मृग को तीन अंक दिये जाते हैं क्योंकि इन्हें शुभ मित्र योनि माना जाता है।
अश्व और गज, अश्व और सर्प, अश्व और श्वान, अश्व और मार्जार, अश्व और मूषक, अश्व और वानर, एवं अश्व और नकुल को दो अंक दिये जाते हैं क्योंकि इन्हें सम मित्र योनि माना जाता है।
अश्व और व्याघ्र, तथा अश्व और सिंह को एक अंक दिया जाता है क्योंकि इन्हें अशुभ सम शत्रु योनि माना जाता है।
अश्व और महिष को शून्य अंक दिये जाते हैं क्योंकि ये महावैर योनि के माने जाते हैं।
इसी प्रकार अन्य सम्बंधों के लिए अंक निम्न प्रकार हैं - (क्षैतिज वर के लिए, उर्ध्वाधर कन्या के लिए)
योनि | अश्व | गज | मेष | सर्प | श्वान | मार्जार | मूषक | गौ | महिष | व्याघ्र | मृग | वानर | नकुल | सिंह |
अश्व | 4 | 2 | 3 | 2 | 2 | 3 | 3 | 3 | 0 | 1 | 3 | 2 | 2 | 1 |
गज | 2 | 4 | 3 | 2 | 2 | 3 | 3 | 3 | 3 | 2 | 2 | 2 | 2 | 0 |
मेष | 3 | 3 | 4 | 3 | 2 | 3 | 1 | 3 | 3 | 1 | 3 | 0 | 3 | 1 |
सर्प | 2 | 2 | 3 | 4 | 2 | 2 | 1 | 1 | 2 | 2 | 2 | 2 | 0 | 2 |
श्वान | 2 | 2 | 2 | 2 | 4 | 1 | 1 | 2 | 2 | 1 | 0 | 2 | 2 | 1 |
मार्जार | 2 | 2 | 3 | 2 | 1 | 4 | 0 | 2 | 2 | 1 | 2 | 2 | 2 | 2 |
मूषक | 2 | 2 | 2 | 1 | 1 | 0 | 4 | 2 | 2 | 2 | 2 | 2 | 2 | 1 |
गौ | 3 | 2 | 3 | 1 | 2 | 2 | 2 | 4 | 3 | 0 | 3 | 2 | 3 | 1 |
महिष | 0 | 3 | 3 | 2 | 2 | 2 | 2 | 3 | 4 | 1 | 2 | 2 | 2 | 3 |
व्याघ्र | 1 | 2 | 1 | 2 | 1 | 1 | 2 | 0 | 1 | 4 | 2 | 1 | 2 | 2 |
मृग | 3 | 2 | 3 | 2 | 0 | 2 | 2 | 3 | 2 | 1 | 4 | 2 | 2 | 2 |
वानर | 2 | 3 | 0 | 2 | 2 | 2 | 2 | 2 | 2 | 1 | 2 | 4 | 2 | 3 |
नकुल | 2 | 2 | 3 | 0 | 2 | 2 | 2 | 3 | 2 | 2 | 2 | 4 | 4 | 2 |
सिंह | 1 | 0 | 1 | 2 | 1 | 2 | 1 | 1 | 3 | 2 | 2 | 2 | 2 | 4 |
विशेष – शूद्र वर्ण के जातक के लिए यह अति महत्वपूर्ण विचारणीय विषय है। ऐसे जातक के लिए योनि दोष होने पर विवाह सर्वथा वर्जित है।
अन्य वर्ण के जातकों के लिए भी इसका महत्व है। यदि महावैर योनि हो तो उसका परिहार ग्रह मैत्री से होता है।