विद्या
सत् अर्थात् यथार्थ के ज्ञान को ही विद्या कहते हैं।इसके गुण के बारे में प्रचीन भारतीय ग्रन्थों में कहा गया – अदुष्टं विद्या। अर्थात् विद्या वही है जो अदुष्ट हो। विद्या सुख का एक प्रमुख स्रोत है।
इन्द्रियों तथा संस्कार की दोषहीनता की स्थिति में ही विद्या प्राप्त होती है, क्योंकि तभी यथार्थ रूप से सत् की अनुभूति होती है।
अनुभूति विहीन शब्द मात्र को ज्ञान नहीं माना जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि आप पूछेंगे कि नमक का स्वाद कैसा होता है तो शब्द ज्ञान वाला कह देगा नमकीन। परन्तु यदि उसने नमक चखा ही नहीं हो तो अनुभूति के अभाव में उसे नमक के स्वाद का ज्ञान है ऐसा नहीं माना जा सकता।