विस्मय
विस्मय चित्त की वह चमत्कृत अवस्था है जिसमें वह सामान्य की परिधि से बाहर उठकर विस्तार लाभ करता है।मन का यह भाव चमत्कार होने पर उत्पन्न होता है।
विस्मय की परिभाषा सरस्वतीकण्ठाभरण में निम्न प्रकार से दी गयी है -
विस्मयश्चित्तविस्तारः पदार्थातिशयादिभिः।
अर्थात् किसी अलौकिक पदार्थ के गोचरीकरण से उत्पन्न चित्त का विस्तार ही विस्मय है।
विश्वनाथ ने विस्मय को चमत्कार का ही पर्याय बताया है।
विस्मय हर रस की अनुभूति में रहने के कारण इसकी प्रतीति हर रस में होती है।
भानुदत्त के अनुसार विस्मय सभी रसों में संचार करता है।
मनोविज्ञान में विस्मय एक प्रधान भाव है जिसकी प्रवृत्ति जिज्ञासा मानी गयी है।
मनोविज्ञान में परिकल्पना की गयी है कि विस्मय मानव जीवन में आदि काल से ही प्रमुख दो भावों में शामिल रहा है। दूसरा भाव है भय।
यही कारण है कि भय तथा विस्मय मानव सभ्यता के विकास के प्रत्येक चरण में अध्ययन के महत्वपूर्ण विषय रहे हैं।