वेद
वेद संस्कृत भाषा का शब्द है। यह विद् से बना है, जिसका अर्थ होता है जानना। अर्थात् विद् ज्ञान है और वेद ज्ञान का भंडार, या ज्ञान का संकलन।ऋषियों ने जो ज्ञान प्राप्त किया था उसे संकलित कर चार भागों में बांट दिया गया। एक तरह से यह ज्ञान का वर्गीकरण ही था। इस प्रकार वेद चार हो गये - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद।
वेदों की अनेक शाखाओं का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद 101, सामवेद की 1000 तथा अथर्ववेद की 9 शाखाएं थीं। इनमें से अधिकांश शाखाओं के ग्रंथ नहीं मिलते।
जिस भाग में देवताओं के गुणों का वर्णन है उसे ऋग्वेद का नाम दिया गया।
यजुर्वेद में बताया गया कि विभिन्न प्रकार के यज्ञों को किस प्रकार किया जाना चाहिए।
सामवेद में बताया गया कि जो मंत्र हैं उनका पाठ या गायन किस प्रकार किया जाये।
अथर्ववेद में ब्रह्मज्ञान सम्बंधी मंत्रों को रखा गया है।
भारतीय वांङमय में अनेक स्थानों पर वेदत्रयी तथा वेदचतुष्टयी जैसी शब्दावली का प्रयोग मिलता है। यदि इन शब्दावलियों को लिया जाये तो वेदत्रयी का अर्थ है ज्ञान को पद्य, गद्य और गायन में श्रेणीबद्ध करना, तथा वेदचतुष्टयी उसी पुराने वर्गीकरण को कहा गया जिसमें चारों वेद आते हैं। परन्तु इन वर्गीकरण के बावजूद मंत्रों की संख्या में कोई अन्तर नहीं होता।
पादबद्ध व्यवस्था वाले मंत्र ऋग्वेद में पाये जाते हैं, गद्य व्यवस्था वाले मंत्र यजुर्वेद में, तथा गायन की व्यवस्था सामवेद में उपलब्ध है। इस प्रकार यदि कहें तो ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद वेदत्रयी हो जाते हैं। यही कारण है कि कुछ विद्वान अथर्ववेद को बाद में लिखा गया और वेदों के साथ मिलाया हुआ मानते हैं। परन्तु ऐसा मानना गलत है। अथर्ववेद पीछे से कदापि नहीं जोड़ा गया है क्योंकि यज्ञों में ब्रह्मा तो अथर्ववेदी ही होते हैं। फिर किसी भी यज्ञ में तो ब्रह्मा का आवाहन होता ही है। इसलिए पद्य, गद्य और गायन को ही वेदत्रयी मानना सही होगा।
यहां ध्यान रखने की आवश्यकता यह है कि यजुर्वेद में अनेक पादबद्ध मंत्र ऋग्वेद और अथर्ववेद से लिए गये हैं। परन्तु यजुर्वेद में उनका उच्चारण पद्य की तरह नहीं, बल्कि गद्य की तरह ही किया जाता है। ऋग्वेद का पाठ पद्य की तरह ही किया जाता है, परन्तु सामवेद में गायन होता है।
इस प्रकार वेदत्रयी के तीन भाग हुए - पद्यमंत्र, गद्यमंत्र तथा गायनमंत्र
वेदचतुष्टयी हुए - गुणवर्णन मंत्र (ऋग्वेद), यज्ञकर्म मंत्र (यजुर्वेद), गान मंत्र (सामवेद), तथा ब्रह्मज्ञान मंत्र (अथर्ववेद)।