शून्यवाद
शून्यवाद वह वाद है जिसमें परम सत् को अवर्णनीय कहा गया। इसके अनुसार वह सत् शून्य है। सत् असत्, सत् और असत् दोनों, तथा न सत् और न असत् अर्थात् वह अनुभव से भिन्न है।शून्य का अस्तित्व माना गया। इस दर्शन में अस्तित्वहीनता को शून्य नहीं कहा जाता। वह सत् नहीं है ऐसा भी नहीं कहा जाता। यह एक प्रकार का अनात्मवाद है परन्तु इसमें यह नहीं कहा जाता कि आत्मा नहीं है।
यह शून्यवाद बौद्ध परम्परा का एक दर्शन है। यहां जाकर आत्मा, परब्रह्म या शून्य केवल नाम से ही अलग हैं, तत्वतः नहीं।