शोभा अलंकार
शोभा अलंकार का प्रयोग नायिकाओं की स्वतः बिना किसी यत्न के प्रकट होने वाली शोभा के वर्णन के लिए किया जाता है।कहा गया है कि शोभा ही शरीर का वास्तविक आभूषण है। शोभा का अस्तित्व अपने आप में है तथा रूप आदि तो उसके अंगमात्र हैं।
बिहारी ने अपनी एक कविता में तो यहां तक कहा -
भूषन भारु संभारिहै, क्यों इहि तन सुकुमार।
सूधे पाइ न धर परै, शोभा ही के भार।
अन्य विद्वान मानते हैं कि इस शोभा का मूल कारण रूप सौंदर्य, वासना और यौवन है। कुछ कहते हैं कि नायिका के अंगों के रूप, यौवन, लालित्य, सुख तथा भोग आदि की भावना से युक्त शरीर की सुन्दरता ही शोभा है। परन्तु अनेक विद्वान मानते हैं कि ये तो केवल शोभा के अंगमात्र हैं।