श्रीनाथ जी
श्रीनाथ जी (भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति) का प्राकट्य सन् 1492 में गोवर्धन पर्वत पर हुआ था।वल्लभाचार्य ने तब ब्रज में पहली बार आकर वहां के एक छोटे से मंदिर में उन्हें प्रतिष्ठत किया था। वल्लभाचार्य मूल रूप से अडैल के निवासी थे।
निकट के ही जमुनावतो गांव के निवासी गोरवा क्षत्रिय कुम्भनदास को उन्होंने दीक्षा देकर श्रीनाथ जी की कीर्तन सेवा में लगाया था।
श्रीनाथ जी के बड़े मंदिर की नींव सन् 1499 में डाली गयी जब बल्लभाचार्य दूसरी बार ब्रज आये तथा अम्बाला के सेठ पूरनमल ने काफी धन दान दिया था। सन् 1509 में बड़े मंदिर में श्रीनाथ जी को प्रतिष्ठत किया गया।
बाद में यह पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र बना। अष्टछाप कवि के रूप में विख्यात संत कवियों का यह निवास स्थान बना। इन संत कवियों से संगीत और गायन सीखने के लिए तानसेन जैसे प्रसिद्ध गायक भी आया करते थे। उन्हें सुनने के लिए राजा अकबर का वेश बदलकर वहां जाने की अनेक कहानियां भी प्रचलित हैं।