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सूफीवाद

पद सूफी, वली, दरवेश और फकीर का उपयोग मुस्लिम संतों के लिए किया जाता है, जिन्‍होंने अपनी पूर्वाभासी शक्तियों के विकास हेतु वैराग्‍य अपनाकर, सम्‍पूर्णता की ओर जाकर, त्‍याग और आत्‍म अस्‍वीकार के माध्‍यम से प्रयास किया। बारहवीं शताब्‍दी ए.डी. तक, सूफीवाद इस्‍लामी सामाजिक जीवन के एक सार्वभौमिक पक्ष का प्रतीक बन गया, क्‍योंकि यह पूरे इस्‍लामिक समुदाय में अपना प्रभाव विस्‍तारित कर चुका था।

सूफीवाद इस्‍लाम धर्म के अंदरुनी या गूढ़ पक्ष को या मुस्लिम धर्म के रहस्‍यमयी आयाम का प्रतिनिधित्‍व करता है। जबकि, सूफी संतों ने सभी धार्मिक और सामुदायिक भेदभावों से आगे बढ़कर विशाल पर मानवता के हित को प्रोत्‍साहन देने के लिए कार्य किया। सूफी सन्‍त दार्शनिकों का एक ऐसा वर्ग था जो अपनी धार्मिक विचारधारा के लिए उल्‍लेखनीय रहा। सूफियों ने ईश्‍वर को सर्वोच्‍च सुंदर माना है और ऐसा माना जाता है कि सभी को इसकी प्रशंसा करनी चाहिए, उसकी याद में खुशी महसूस करनी चाहिए और केवल उसी पर ध्‍यान केन्द्रित करना चाहिए। उन्‍होंने विश्‍वास किया कि ईश्‍वर माशूक और सूफी आशिक हैं।

सूफीवाद ने स्‍वयं को विभिन्‍न 'सिलसिलों' या क्रमों में बांटा। सर्वाधिक चार लोकप्रिय वर्ग हैं चिश्‍ती, सुहारावार्डिस, कादिरियाह और नक्‍शबंदी।

Page last modified on Wednesday April 2, 2014 07:59:09 GMT-0000