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स्वस्थ

किसी भी जीवधारी की वह अवस्था जिसमें वह अपनी स्वाभाविक अवस्था में (स्व स्थ) रहता है। इसी स्वाभाविक अवस्था में उसके सुख प्राप्त करने की संभावना है क्योंकि यही उसका आधार है।

आयुर्वेद में कहा गया है कि जिस व्यक्ति का स्नायुमंडल (वात), पाचकाग्नि तथा रक्त संवहन (पित्त), एवं औज अथवा जीवशक्ति तथा मलोत्सर्ग (कफ) प्रणाली दोषमुक्त हो वही स्वस्थ है।

ये तभी दोषमुक्त रह सकते हैं जब मन भी दोषमुक्त होगा। अशान्त तथा दुखी मन का होना ही दोष है।

इस प्रकार पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति उन्हें माना जाता है जो सूक्ष्म मन तथा स्थूल शरीर दोनों से स्वस्थ हो अर्थात् जब दोनों यथावत् काम कर रहे हों।

Page last modified on Tuesday April 1, 2014 15:08:45 GMT-0000