हठयोग में आधार
भारतीय हठयोग परम्परा में सोलह आधार बताये गये हैं। गोरखनाथ ने योगी के लिए इन आधारों का ज्ञान अनिवार्य बताया है।ये आधार पिण्ड में, अर्थात् मानव शरीर में स्थित हैं।
पादांगुष्ठ को पहला आधार माना गया है। इनपर योगी एकाग्रदृष्टि करको ज्योति चैतन्य का अभ्यास करता है। मान्यता है कि ऐसा करने से दृष्टि स्थिर होती है।
मूलाधार को दूसरा आधार माना जाता है। मान्यता है कि मूलाधार अग्नि को दीप्त करता है।
गुह्याधार तीसरा आधार है। योगी इसके संकोच-विस्तार का अभ्यास करता है। इसका उद्देश्य है अपान वायु को वज्रगर्भ नाड़ी में प्रविष्ट कराकर चौथे आधार बिन्दुचक्र में पहुंचाना। इसे वीर्य-स्तम्भन शक्ति को बढ़ाने के लिए किया जाता है। योगियों की वज्रोली नामक जो साधना है उसमें इस शक्ति का महत्व है। कहा जाता है कि योगी इस शक्ति के बल पर वीर्य को योनि में स्खलित कर उसे पुनः खींचकर वज्रनाड़ी द्वारा बिन्दु स्थान में पहुंचा देते हैं।
नाड्याधार या उड्डीयानबन्धाधार को पांचवां आधार कहा जाता है। योगी पश्चिमोत्तान आसन पर बैठक गुदा को संकुचित करते हैं। उनका मानना है कि इससे मल-मूत्र और कृमि की समस्या समाप्त हो जाती है।
नाभिमंडलाधार छठा आधार है। इसमें चैतन्य ज्योति स्वरूप का ध्यान किया जाता है और साथ-साथ ऊं का जाप किया जाता है। ऐसा करने से नाद की उत्पत्ति होती है जिसे योगी सुनता है।
हृदयाधार को सातवां आधार माना जाता है। योगी इसमें योगी प्राणवायु का रोध करता है। मान्यता है कि इससे हृदयकमल का विकास होता है।
कंठाधार आठवां आधार है। योगी अपनी ठुड्ढी को हृदयदेश पर दृढ़ता पूर्वक अवस्थित करता है और तब ध्यान लगाता है। इड़ा और पिंगला में प्रवाहित होने वाले वायु को स्थित करने के लिए ऐसा किया जाता है।
क्षुद्रघंटिकाधार नौवां आधार है। यह कंठ मूल में स्थित है। इसे काकल या कौवा के नाम से भी जाना जाता है। लिंगाकार जो दो लोरें हैं वे ही क्षुद्रघंटिकाधार मानी जाती हैं। कहा जाता है कि योगी जब जीभ को उलटकर यहां तक पहुंचाता है तब उसके लिए ब्रह्मरंध्र में स्थित चन्द्रमंडल से निरन्तर झरने वाले अमृत रस को पीना आसान हो जाता है।
ताल्वन्ताधार दसवां आधार है। खेचरी मुद्रा की सिद्धि के लिए जीभ का चालन और दोहन कर उसे लम्बा किया जाता है तथा यहां प्रवेश कराया जाता है। गोरक्ष पद्धति में इसे जिह्वामूलाधार कहा जाता है।
रसाधार ग्यारहवां आधार है। यह जिह्वा के अधोभाग में स्थित माना जाता है। गोरक्ष पद्धति में इसे जिह्वा का अधोभागाधार कहा जाता है।
ऊर्ध्वदन्तमूलाधार बारहवां आधार है। कहा जाता है कि इस स्थान पर जिह्वा के अग्रभाग को दबाने से क्षणमात्र में व्याधियां दूर हो जाती हैं।
नासिकाग्राधार तेरहवां आधार है। योगी अपने मन में स्थिरता लाने के लिए इसपर अपनी दृष्टि स्थिर करते हैं।
नासामूलाधार चौदहवां आधार है। कहा जाता है कि जो योगी इसपर अपनी दृष्टि स्थिर करते हैं उन्हें छह माह के अन्दर ज्योति दिखायी दे देती है।
भ्रूमध्याधार पन्द्रहवां आधार है। योगी अपनी आंखों को ऊपर रखकर इसे देखने का अभ्यास करते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से उन्हें उज्ज्वल किरणों के दर्शन होते हैं। यह भी कहा जाता है कि मन को सूर्याकाश में लीन करने में यही अभ्यास काम आता है।
नेत्राधार सोलहवां आधार है। योगी आंखों के अपांगों (कोणों) को उंगलियों से ऊपर की ओर चलाते हैं। ऐसे करने से, कहा जाता है कि, उन्हें ज्योतिपुंज के दर्शन होते हैं।