हठयोग
हठयोग एक भारतीय योग पद्धति है। सिद्धसिद्धान्तपद्धति में 'ह' का अर्थ सूर्य है, और 'ठ' का अर्थ चन्द्रमा। इसी दोनों का योग हठ योग है। परन्तु दोनों के योग का तात्पर्य क्या है?ब्रह्मानंद के अनुसार सूर्य प्राणवायु का द्योतक है तथा चन्द्र अपानवायु का। प्राणायाम के माध्यम से प्राणवायु तथा अपानवायु को का योग, जिसका तात्पर्य है वायु का निरोध, ही हठयोग है।
परन्तु ब्रह्ममानंद की इस परिभाषा से अलग भी एक मान्यता है। इड़ा नाड़ी को सूर्य कहा जाता है और पिंगला नाड़ी को चन्द्र। दोनों का योग तब माना जाता है जब इन दोनों नाड़ियों को रोककर तीसरी नाड़ी सुषुम्ना के मार्ग से प्राण संचारित किया जाता है। इसी को योगियों ने हठयोग माना।
'गुह्य समाजतन्त्र' में बोधि प्राप्ति के अनेक तरीके बताने के बाद आचार्य ने कहा है कि उनके बताये गये विधियों से सिद्धि प्राप्त न हो तो हठयोग का आश्रय लेना चाहिए। हठयोग शब्द का सबसे पहले उपयोग इसी तन्त्र में मिलता है।
'योगस्वरोदय' के अनुसार हठयोग के दो चरण हैं। पहले में आसन, प्रणायाम, तथा धोती आदि षट्कर्मों का विधान है। दूसरे में नासिका के अग्रभाग में दृष्टि निबद्ध कर आकाश में कोटिसूर्य प्रकाश का स्मरण और श्वेत, रक्त, पीत, और कृष्ण रंगों के ध्यान का विधान है। कहा जाता है कि पहले से नाड़ियां शुद्ध होती हैं तथा उनमें पूरित वायु मन को निश्चल बनाता है। दूसरे से सिद्धि प्राप्त होती है।
हठयोग की प्रचीन विधि मार्कण्डेय द्वारा बतायी गयी थी जिसके आठ अंग थे - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इसलिए मार्कण्डेय के योग को अष्टांग योग कहते है। सिद्धसिद्धान्तसंग्रह इसी अष्टांग योग की बात करता है।
बाद में गोरखनाथ ने इनमें से पहले दो को छोड़ दिया और छह अंग बताये। इसिलिए गोरखनाथ के बताये योग को षडंग योग कहते हैं। गोरक्षनाथ शतक इसी षडंग योग की बात करता है।