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हिन्दी साहित्य का आदिकाल

हिन्दी साहित्य का आदिकाल सन् 983 से सन् 1318 तक की अवधि को माना जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहासकार रामचन्द्र शुक्ल द्वारा निर्धारित यह काल सामान्यतः अन्य साहित्यकार भी मानते हैं।

हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने इस आदिकाल को वीरगाथाकाल, चारणकाल, या सिद्ध-सामन्तकाल भी कहा। ये नाम उक्त अवधि के उपलब्ध साहित्य के गुणों के आधार पर दिये गये हैं। परन्तु अनेक साहित्यकार इसे ये नाम देने का खंडन करते हैं।

उस युग के साहित्य को अपभ्रंश या देशभाषा काव्य भी कहा गया क्योंकि उनकी भाषा वर्तामान हिन्दी भाषा से स्वरूप से भिन्न था। उस स्वरूप को हिन्दी की अपभ्रंश या देशज भाषा माना गया।

इस काल की प्रमुख पुस्तकें हैं - विजयपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, खुमान रासो, बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो, जयचन्द्रप्रकाश, जयमयंक जसचन्द्रिका, परमाल रासो, (अमीर) खुसरो की पहेलियां, तथा विद्यापति की पदावली।

रासो शब्द के आधार पर वीरगाथाकाल नाम दिया गया। परन्तु अनेक अन्य रासो ग्रंथ भी मिले हैं जिनमें वीरगाथा के अलावा श्रृंगार तथा भक्ति भी हैं।

रासो की पठित परम्परा भी मिलती है तथा गेय परम्परा भी।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल' नाम से एक ग्रंथ भी लिखा है।


Page last modified on Tuesday July 15, 2014 07:02:45 GMT-0000