भारत और बांग्लादेश के बीच पिछले 4 दशकों से जो संबंध रहा है वह कोई बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। दोनों के बीच विश्वास का अभाव रहा है। इसके बावजूद पिछले 2009 में आवामी लीग के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध कुछ सुधरे हैं। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने देश में रह रहे भारत विरोधी उग्रवादी संगठनों के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की। अनेक को गिरफ्तार करके भारत को सौंप दिया और उग्रवादियों के भारत बांग्लादेश की सीमा से आर पार होने पर भी रोक लगा दी। इसके कारण भारत के पूर्वात्तर देशों के उग्रवादियों की गतिविधियों पर कुछ लगाम लगा है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री पिछले साल जनवरी महीने में भारत आई थीं और उसके बाद दोनों देशों के संबंधों में और भी सुधार के आसार बन रहे थे।

बांग्लादेश की यात्रा भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 मे की थी। उसके बाद लंबे अंतराल के बाद पिछले दिनों प्रधानमं.त्री मनमोहन सिंह की वहां की यात्रा हुई। अटल की यात्रा के दौरान भी तीस्ता जल बंटवारे पर बातचीत हुई थी। उस समय भी पश्चिम बंगाल की सरकार को केन्द्र ने विश्वास में लिया था। जब उस राज्य के मुख्यमंत्री ज्योति बसु थे।

मनमोहन सिंह दुबारा सत्ता में आने के बाद 15 महीनों तक इंतजार करते रहे ताकि राज्य में ममता बनर्जी की सरकार आए। ममता का शेख हसीना के साथ व्यक्तिगत ताल्लुकात बहुत अच्छे हैं। इसलिए केन्द्र सरकार को लगा कि तीस्ता जल बंटवारें पर समझौते के लिए यह बहुत ही सही समय है।

तीस्ता एक ऐसा उदाहरण है, जो यह बताता है कि केन्द्र सरकार को अपने अंतरराष्ट्रीय संबंध निर्धारित करने मे किसी राज्य सरकार का कितना ध्यान रखना पड़ता है। आने वाले दिनों में बांग्लादेश में ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल में भी पानी की मांग बढ़ने वाली है। यही कारण है कि तीस्ता पर भारत का रुख तय करने के पहले केन्द्र सरकार को पहले पूरी तरह से ममता को अपने विश्वास मे ंलेना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ममता को हल्के से लिया और मान लिया कि उधर से कोई समस्या नहीं आएगी। जाहिर है विदेश मंत्रालय ले ममता को समझने में गलती की।

सवाल उठता है कि आखिर ममता ने इस तरह का निर्णय क्यों किया? क्या वह प्रधानमंची मनमोहन सिंह और उनकी जगह दिखाना चाहती थीं? बहुत दिनों से अखबारों में चर्चा चल रही थी कि यात्रा के दौरान तीस्ता जल समझौता सबसे महत्वपूर्ण समझौता होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन पिछले 30 अगस्त को खुद कोलकाता गए थे और वहां उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को उसके बारे में ब्रीफ किया था। इसलिए यदि आज ममता कहती है कि उन्हें तीस्ता जल समझौते के बारे में जानकारी नहीं थी, तो केन्द्र सरकार को इसके बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री चुप हैं और इसका कारण यह है कि अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिए उनकी सरकार तृणमूल के 19 लोकसभा सांसदों के समर्थन पर आश्रित है।

ममता बनर्जी ने यह सब इसलिए किया, क्योंकि उनकी पहली चिंता उनकी अपनी कुर्सी है। वह नहीं चाहती कि वाम दलों को हराकर उन्होंने जो कुर्सी हासिल की है, उसे वह यांे ही गंवा दें। पानी का मामला बहुत ही संवेदनशील मामला है और इस मसले पर वह विप़क्षी वामदलों को जनता की भावना को भड़काने को कोई मौका नहीं देना चाहती थीं। वे लोगों को यह भी बताना चाहती थीं कि उनके लिए राज्य का महत्व सबसे ऊपर है और वह इस तरह का संदेश जारी करने में सफल भी रहीं। (संवाद)