सच कहा जाय तो यह विदेश मंत्रालय की विफलता है कि उसने बांग्लादेश यात्रा के पहले गड़बड़ी कर दी और ममता बनर्जी को समझने में भूल कर दी। इसके कारण यात्रा शुरू होने के पहले ही तीस्ता जल बंटवारे का मुद्दा भारत बांग्लादेश के संबंधों के बीच का सबसे बड़ा मुद्दा दिखाई देने लगा। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच इस यात्रा के दौरान कोई सहमति नहीं बन सकी।
लेकिन मनमोहन सिंह ने अपनी यात्रा के दौरान बांग्लादेश के साथ एक ऐसा करार किया है, जो भारत के इस पड़ोसी देश के लिए बहुत ही फायदेमंद है और इसके कारण उसकी विकास दर भी तेज हो सकती है। तीस्ता के जल बंटवारें से यह कहीं बड़ा करार है। यह बांग्लादेश के गार्मेंट सेक्टर से ताल्लुकात रखता है।
आज बांग्लादेश दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गार्म्रेंट्स निर्यातक देश है। यह उद्योग बांग्लादेश का सबसे बड़ा निर्यात भी है। अब भारत ने बांग्लादेश के इस सेक्टर को अपने यहां खुले निर्यात करने की छूट दे दी है। इसके कारण अब भारत का बहुत विशाल सिले सिलाए कपड़े का बाजार बांग्लादेश के लिए खुल गया है।
जाहिर है इसके कारण बांग्लादेश के इस उद्योग को भारी फायदा होगा। बांग्लादेश में रेडिमेड गार्मेंट्स के उत्पादन में भारत की अपेक्षा कम खर्च बैठता है। इसके कारण वहां का माल भारत के माल से 20 फीसदी सस्ता भी होता है। अब यदि भारत के रेडिमेड गार्मेंट्स को बांग्लादेश के रेडिमेड गार्मेंट्स से प्रतिस्पर्धा करनी पड़े, तो भारत इसमें कमजोर पड़ता जाएगा।
यही कारण है कि भारत के रेडिमेंड कपड़ों के उत्पादकों के सामने खतरा पैदा हो गया है। यह उद्योग भारत की निर्यात आय का भी एक अच्छा स्रोत हुआ करता था, लेकिन इसकी चमक कमजोर पड़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार मे कड़ी प्रतिस्पर्धा के सामने भारत का यह उद्योग वहां अपनी पकड़ कमजोर पा रहा है।
जाहिर है रेडिमेंड कपड़े के उत्पादक भारत के घरेलू बाजार पर ही ज्यादा निर्भर हैं। अंततराष्ट्रीय बाजार में तो बांग्लादेश से भी वे पिट जाते हैं। आज बांग्लादेश का यह व्यापार भारत के अंतरराष्ट्री य व्यापार से ज्यादा है। मनमोहन सिंह के दौरे के बाद अब भारत के रेडिमेड वस्त्रों के उत्पादक बांग्लादेश के रेडिमेड कपड़ों क उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा करते दिखाई पड़ेंगे और उन्हें उनकी बराबरी करने के लिए अपनी लागत कम करनी होगी।
बांग्लादेश के साथ हुए उस ऐतिहासिक समझौते का भारत के रेडिमेड कपड़ों के उत्पादको की ओर से विरोध नहीं किया गया। यह थोड़ी अचरज की बात जरूर है। लेकिन अब जब समझौता हो गया है, तो उन्हें बांग्लादेश के निर्यातकों के साथ प्रतिस्पर्धा में तो शामिल होना ही होगा। इसके लिए उन्हें अपने माल की गुणवत्ता बढ़ानी होगी और उत्पादन लागत की कम करनी होगी।
भारत ने बांग्लादेश को उतनी बड़ी छूट प्रधानमंत्री के इस दौरे के दौरान दी, लेकिन हम इसका राजनयिक फायदा नहीं उठा पा रहे है। इसके कारण दोनों देशों के बीच संबंध मधुर होने का एक बड़ा आधार तैयार होता है, लेकिन आज ऐसा संदेश जा रहा है कि भारत ने बांग्लादेश के साथ संबंध सुधारने का एक मौका खो दिया, क्योंकि तीस्ता जल बंटवारे पर सहमति लंबित रह गई। (संवाद)
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मनमोहन की बांग्लादेश यात्रा
तीस्ता विवाद में दबकर रह गया बांग्लादेश से हुआ एक बड़ा करार
नन्तु बनर्जी - 2011-09-10 10:15
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बांग्लादेश के दौरे से वापस लौट आए है। दौर के दौरान जो नहीं हुआ उसकी तो बहुत चर्चा है, लेकिन जो हुआ उसके बारे में लोग बातें तक नहीं कर रहे। यह भारत के राजनय की विफलता है। मानना पड़ेगा कि हमारा विदेश मंत्रालय बांग्लादेश के साथ हुए ताजा करार का राजनयिक फायदा लेने मे सफल नहीं रहा।