रिंडरपेस्ट के उन्मूलन में भारत ने विशेषकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने एक अहम भूमिका निभाई। इसी भूमिका को रेखांकित करने के उद्देश्य से 23 अगस्त 2011 को केंद्रीय पशुपालन, डेयरी और मत्स्य विभाग और भा.कृ.अनु.प. की ओर से राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित कर भारत से रोग के पूरी तरह उन्मूलन की घोषणा की गई। रिंडरपेस्ट के उन्मूलन में भारत सरकार और भा.कृ.अनु.प. के महत्वपूर्ण योगदान की भी इस कार्यक्रम में चर्चा की गई, इसी पर आधारित यह आलेख-
रिंडरपेस्ट के उन्मूलन से अब पशुधन और अधिक सुरक्षित हो गया है, जिसका आर्थिक लाभ दुनियाभर के पशुपालकों को होने की उम्मीद है। इसका सबसे अधिक फायदा छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों को होगा जिनके लिए पशु आय का एक अतिरिक्त स्त्रोत होते हैं। रिंडरपेस्ट से मुक्ति का श्रेय पशु चिकित्सकों और अनुसंधानकर्ताओं को जाता है जिन्होंने सुदूरवर्ती और दुर्गम क्षेत्रों में भी इस रोग को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।
श्री रुद्र गंगाधरन, सचिव, पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार का कहना था कि दुनियाभर में इस रोग से मुक्ति विभिन्न एजेंसी के स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक सहयोग के चलते हो सकी। उन्होंने 12वीं पंचवर्षीय योजना में पशुओं को होने वाली नई बीमारियों को केंद्र में रखने का आश्वासन दिया। डॉ एस अय्यप्पन, सचिव, डेयर, और महानिदेशक, भा.कृ.अनु.प. का कहना था कि रिंडरपेस्ट के उन्मूलन से ही देश में हरित क्रांति संभव हो सकी। उन्होंने नई बीमारियों के लिए भी इसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त पहल का आह्वान किया। प्रो. पी.के. उप्पल, राष्ट्रीय सलाहकार, एफएओ ने भारत में रिंडरपेस्ट रोग और इसके उन्मूलन के लिए उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से बताया। श्री गैवीन वॉल, भारतीय प्रतिनिधि, एफएओ ने उन्मूलन के बाद की रणनीति के प्रभावी क्रियान्वयन का आह्वान किया। उन्होंने रिंडरपेस्ट के उन्मूलन के लिए अपनाई गई सहभागिता को अन्य पशु रोगों के उन्मूलन के लिए भी अपनाने को कहा।
भारत में रिंडरपेस्ट रोग की जानकारी
भारत सरकार की ओर से 1868 में गठित भारतीय पशु प्लेग कमीशन ने रिंडरपेस्ट की खोज करने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस रोग की उत्पत्ति असम में 1752 में पाई गई। रिंडरपेस्ट की भयावहता को देखते हुए 1880 में इंपीरियल बैक्टोरियलॉजिकल लेबोरेट्रीज की मुक्तेश्वर में स्थापना के साथ इस दिशा में अनुसंधान की शुरूआत हुई। इसी को अब इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई), मुक्तेश्वर-इज्जतनगर के नाम से जाना जाता है। इस समय तक रिंडरपेस्ट से प्रभावित 80 से 90 फीसदी पशुओं की मौत हो रही थी जिसका दुष्प्रभाव पशुओं पर आधारित खेती पर पड़ रहा था।
मई 1897 में भारत सरकार के आमंत्रण पर अनुसंधानकर्ताओं की मदद के लिए टीबी रोग चिकित्सा के पिता माने जाने वाले रॉबर्ट कोच अपनी टीम के साथ आईवीआरआई, मुक्तेश्वर पहुंचे। रिंडरपेस्ट की रोकथाम के लिए वर्ष 1900 के बाद से बड़े पैमाने पर टीके के उत्पादन का कार्य शुरू हुआ। इस दिशा में महत्वपूर्ण अनुसंधान 1920 के दशक में हुआ जब आईबीएल, मुक्तेश्वर के निदेशक जे.टी. एडवर्ड ने रिंडरपेस्ट के वायरस को और अधिक विकसित करके इससे बकरियों को सुरक्षित बना दिया। बाद में इसी प्रयोग को और अधिक विस्तार देते हुए अन्य पशुओं को भी रिंडरपेस्ट से मुक्त करने में ऐतिहासिक सफलता मिली।
रिंडरपेस्ट के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पहल
रिंडरपेस्ट का टीका तैयार होने के बाद मार्च 1951 में इसके भारत से पूरी तरह से उन्मूलन के लिए योजना शुरू की गई। इसके बाद वर्ष 1954 में राष्ट्रीय रिंडरपेस्ट उन्मूलन कार्यक्रम की शुरूआत की गई। 1964 तक उत्तर, पूर्वी, पश्चिमी, मध्य और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में रिंडरपेस्ट के रोकथाम में काफी मदद मिली। मार्च 1983 में रिंडरपेस्ट पर नेशनल टास्क फोर्स ने पाया कि आठ राज्य रिंडरपेस्ट से मुक्त हो चुके हैं जबकि दक्षिणी राज्यों विशेषकर आंध्र प्रदेश में यह खतरनाक स्तर पर मौजूद था। टास्क फोर्स की सिफारिश पर आपरेशन रिंडरपेस्ट जीरो शुरू किया गया जिसकी मदद से रिंडरपेस्ट को निश्चित समयावधि में खत्म करने का लक्ष्य रखा गया।
दक्षिण एशिया से रिंडरपेस्ट के उन्मूलन को एफएओ की पहल
दिसंबर 1983 में एफएओ ने आईवीआरआई, इज्जतनगर में एक बैठक आयोजित कर दक्षिण एशिया से रिंडरपेस्ट की समाप्ति के लिए नई पहल शुरू की। इसमें दक्षिण एशिया के देशों को एक साथ मिलकर इस दिशा में कदम उठाने का आह्वान किया गया। बड़े पैमाने पर शुरू किए गए इस वैक्सीनेशन कार्यक्रम से दक्षिण एशिया के पशुओं को इस जानलेवा बीमारी से बचाने में काफी मदद मिली।
इस कार्य के लिए गठित टास्क फोर्स की सिफारिश पर भारत के उच्चायुक्त और यूरोपियन यूनियन ने ब्रसेल्स में छह साल के लिए कार्ययोजना पर दस्तख्त किए। इस कार्ययोजना के तहत पशुओं को होने वाली बीमारियों की रोकथाम, विशेषकर रिंडरपेस्ट को समाप्त करने के लिए विशेष प्रयास किए जाने थे। इसे राष्ट्रीय रिंडरपेस्ट उन्मूलन कार्यक्रम नाम दिया गया। इसके तहत यूरोपियन यूनियन ने 40.30 मिलियन यूरो सहायता के रूप में भारत सरकार को देने का आश्वासन दिया। यह कार्ययोजना 294 करोड़ रुपये के भारतीय और यूरोपियन यूनियन के अनुदान के साथ मई 1992 में शुरू हुई।
इस योजना का कार्यान्वयन केंद्र सरकार, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, भा.कृ.अनु.प. और सहयोगी अनुसंधान संस्थानों की ओर से किया गया। भारत की ओर से अगस्त 2005 में रिंडरपेस्ट के उन्मूलन का डोसियर दिया गया। वर्ल्ड आर्गनाइजेशन फार एनिमल हैल्थ की ओर से 25 मई 2006 को रिंडरपेस्ट के भारत से उन्मूलन की घोषणा की गई। इस प्रकार भारत ने दुनियाभर से रिंडरपेस्ट के उन्मूलन की अपनी प्रतिबद्धता को साबित कर दिया।
रिंडरपेस्ट रोग के अभिशाप से मुक्त हुआ संसार
डॉ. जगदीप सक्सेना/शिव शंकर शर्मा - 2011-10-07 18:03
दुनियाभर के पशुओं के लिए काल का सबब बने रिंडरपेस्ट रोग के अभिशाप से संसार हमेशा के लिए मुक्त हो गया है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की ओर से इसकी अधिकारिक घोषणा कर दी गई है। हालांकि भारत में इस रोग का उन्मूलन 2006 में ही हो गया था मगर दुनिया के कईं देशों को इससे मुक्त होने में समय लगा। पशु प्लेग के नाम से जाना जाने वाला यह दुनिया का पहला ऐसा पशु रोग है जिसका पूरी तरह से उन्मूलन हो गया है।