श्री धुगल के प्रति अपना आग्रह दिखाते हुए प्रधानमंत्री भट्टराई ने राष्ट्रपति राम बरन यादव द्वारा अपने इस कामरेड दोस्त की सजा माफ करवा दी। इतना तक तो ठीक था, लेकिन उनकी अपनी ही पार्टी के एक अन्य नेता अग्नि प्रसाद सपकोटा ने एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कह डाला कि श्री धुंगल को दी गई सजा ही गलत थी, क्योंकि उन्होंने कोई अपराध ही नहीं किया था। उन्होंने खुलासा किया कि उज्जन कुमार श्रेष्ठ की हत्या पार्टी का निर्णय था और वह इसलिए किया गया था, क्योकि वे पार्टी के खिलाफ ही जासूसी करने लगे थे। उन्होंने मानवाधिकारवादी संगठनों की भी आलोचना की जो घुंगल के मसले पर हायतोबा मचा रहे हैं और मामले को इंटरनेशनल कोर्ट आॅफ जस्टिस में ले जाने की बातें कर रहे हैं।
धुगल की माफी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई है। यह चुनौती उज्जन श्रेष्ठ की बहन ने दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति द्वारा माफी के फैसले पर 21 नवंबर तक के लिए रोक लगा दी है। उस रोज सुपी्रम कोर्ट में उस अपील पर सुनवाई होगी।
धुगल की माफी का सबसे जबर्दस्त विरोध संविधानसभा के दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक मधेशी फ्रंट की ओर से हो रहा है। उसका कहना है कि यदि धुगल को माफी मिलती है तो आधा दर्जन से भी ज्यादा उन मधेशी कार्यकत्र्ताओं को भी माफी मिले, जिनके खिलाफ मधेशी आंदोलन के दौरान मुकदमे चल रहे हैं। उनके खिलाफ मुकदमे वापस लिए जाने की मांग भी की जा रही है।
इस बीच संविधान सभा के सदस्य धुगल को माफ करने की प्रधानमंत्री की अनुशंसा के खिलाफ नेपाली कांग्रेस मोर्चा, नेपाल वुमन एसोशिएसन और नेपाल स्अूडेंट्स यूनियन ने संयुक्त रूप से काठमांडू में एक रैली निकाली इस मसले पर कुछ अन्य संगठनों ने मशाल जुलूस भी निकाले और प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई के पुतले भी जलाए गए।
भट्टराई की अपनी माओवादी पार्टी के अंदर भी गुटबाजी चरम पर पहुंच गया है। खुद पार्टी प्रमुख पुष्प कमल दहन उर्फ प्रचंड के साथ उनकी ठनी हुई है। सात सूत्री शांति फार्मूले को लेकर दोनों में मतभेद पैदा हो गया है। भट्टाराई गुट को शक हो रहा है कि प्रचंड की उनके घोर विरोधी वैद्य के साथ मिली भगत चल रही है और वे शांति प्रक्रिया की बात को तेज करना चाहते हैं। उन्हें लग रहा है कि प्रचंड वैद्य गुट के साथ मिलकर उन्हें सत्ता से बाहर करना चाहते हैं। (संवाद)
नेपाल के माओवादी गुटबाजी में उलझे
प्रचंड के गुट के दबाव में भट्टराई
शंकर रे - 2011-11-17 12:14
कोलकाताः जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़े नेपाल के प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई के लिए मौजूदा पद फूलों की सेज लेकर नहीं आया है, बल्कि कांटों का ताज बनकर आया है। नेपाल की उनकी माओवादी पार्टी में गुटबाजी बढ़ गई है और सिर्फ गुटबाजी ही नहीं, बल्कि पार्टी के एक नेता बालकृष्ण धुंगल की माफी का मामला भी उनके गले की हड्डी बन गया है। गौरतलब है कि श्री धुंगल संविधान सभा के सदस्य भी हैं और उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सुनाए अपने फैसले में 2004 में उज्जन श्रेष्ठ की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।